सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/८९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गीतारहत्य अथवा कर्मयोगशास्त्र। तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नीतिमतिर्मम ॥ ७८ ॥ इति श्रीमद्भगवद्गीतासु उपनिषत्सु ब्रह्मविद्यार्या योगशाने श्रीकणार्जुन- संवादे मोक्षसंन्यासयोगो नाम जटादशोऽध्यायः ॥ १८॥ समर्पित कर देने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है, अतएव इस अध्याय का मोव संन्यास-योग नाम रखा गया है।] इस प्रकार चाल गडावर तिलक कृत श्रीमद्भगवद्गीता का रहस-सञ्जीवन नामक प्राकृत अनुवाद टिप्पणी सहित समाप्त हुआ। गंगाधर-पुत्र, पूना-बासी, नहाराष्ट्र विप्र, वैदिक तिलक वाल बुध ते विधायमान । गीतारहत्य" किया श्रोश को समर्पित पह, वार काल योग भूमि शक में सुयोग जान॥ ॥ ॐ तत्सब्रह्मार्पणमस्तु ।। ॥ शान्तिः पुटिन्तुष्टिश्चास्तु ॥