कर्मयोगशास्त्र। सारांश, मनुष्य जो कुछ करता है-जैसे साना, पीना, रोलना, रहना, उठना, बैठना, वासोच्छ्वास करना, इंसना, रोना, सूंघना, देखना, योलना, सुनना, चलना, देना-लेना, सोना, जागना, सारना, लड़ना, मनन और ध्यान करना, प्राज्ञा और निषेध करना, दान देना, यज्ञ-याग करना, खेती और व्यापार-धंधा करना, इच्छा करना, निश्चय करना, चुप रहना इत्यादि इत्यादि-यह सब भगवद्गीता के अनुसार 'या' ही है, चाहे वह कर्म कायिक हो, वाचिक हो अथवा मानसिक हो (गीता ५.८,६)। और तो प्या, जीना-सरना भी कम ही है, मौका पाने पर, यह भी विचार करना पड़ता है कि जीना या मरना ' इन दो कमों में से किसका स्वीकार किया जावे ? इस विचार के उपस्थित होने पर कर्म शब्द का अर्थ 'कर्तव्य कर्म अथवा - विक्षित कर्म' हो जाता है (गी. ४. १६)। मनुष्य के कग के विषय में यहाँ तक विचार हो चुका। अब इसके आगे बढ़ कर सब घर-अचर सृष्टि के भी-अचेतन वस्तु के भी ग्रापार में 'कर्म' शब्द ही का उपयोग होता है। इस विषय का विचार आगे कर्म-विपाक- प्रक्रिया में किया जायगा। कर्म शब्द से भी अधिक भ्रम-कारक शब्द योग है। भाज कल इस शब्द का रूढार्थ " प्राणायाम प्रादिक साधनों से चित्तवृत्तियों या इन्द्रियों का निरोध करना, " अथवा " पातंजल सूत्रोक्त समाधि या ध्यानयोग" है। उपनिपदों में भी इसी अर्थ से इस शब्द का प्रयोग हुआ है (कठ. ६.११)। परन्तु ध्यान में रखना चाहिये कि यह संकुचित अर्थ भगवद्गीता में विवक्षित नहीं है। 'योग' शब्द 'युज्' धातु से बना है जिसका अर्थ " जोड़, मेल, मिलाप, एकता, एकत्र- अवस्थिति" इत्यादि होता है और ऐसी स्थिति की प्राप्ति के “ उपाय, साधन, युक्ति या कर्म " को भी योग कहते हैं। यही सब अर्थ अमरकोप (३.३.२२) में इस तरह से दिये हुए हैं “ योगः संहननोपायध्यानसंगतियुक्तिपु"। फलित ज्योतिप में कोई ग्रह यदि इष्ट अथवा सनिष्ट हाँ तो उन ग्रहों का योग ' इष्ट या अनिष्ट कहलाता है, और योगक्षेम ' पद में योग ' शब्द का अर्थ "अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करना " लिया गया है (गी.९.२२)। भारतीय युद्ध के समय द्रोणाचार्य को अजेय देख कर श्रीकृष्ण ने कहा है कि “एको हि योगोऽस्य भवेद्वधाय" (मभा. दो. १८१.३१) अर्थात् प्रोणाचार्य को जीतने का एक ही · योग' (साधन या युक्ति) है और आगे चल कर उन्होंने यह भी कहा है कि हमने पूर्वकाल में धर्म की रक्षा के लिये जरासंध आदि राजाओं को 'योग' ही से कैसे मारा था। उधोगपर्व (अ. १७२) में कहा गया है कि जय भीम ने अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका को हरण किया तब अन्य राजा लोग योग योग' कह कर उसका पीछा करने लगे थे । महाभारत से योग' शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में अनेक स्थानों पर हुआ है। गीता में योग,' 'योगी' अथवा योग शब्द से बने हुए सामा- सिक शब्द लगभग अस्सी यार आये हैं, परन्तु चार पाँच स्थानों के सिवा (देखो
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