पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/९१

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गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशाख । गी.६.१२ और २३) योग शब्द से 'पातंजल योग' अयं कहीं भी अभिप्रेत नहीं है। सिर्फ 'युक्ति, साधन, कुशलता, उपाय, जोड़, मेल ' यही अर्थ कुछ हेर फेर से सारी गीता में पाये जाते हैं। अतएव कह सकते हैं कि गीताशान के व्यापक शब्दों में योग ' भी एक शब्द है। परन्तु योग शब्द के इन सामान्य प्रयों से ही -जैसे साधन, कुशलता, युक्ति आदि से ही काम नहीं चल सकना, क्योंकि यता की इच्छा के अनुसार यह साधन संन्यास का हो सकता है, कर्म और चित्त-निरोध का हो सकता है, और मोक्ष का अथवा और भी किसी का हो सकता है। उदाह- रणार्थ, कहीं कहीं गीता में, अनेक प्रकार की व्यक मृष्टि निर्माण करने की ईनारी कुशलता और अद्भुत सामव्यं को योग कहा गया है (गी. ७.२५: ६.५, १०.७; 18.८); और इसी अर्थ में भगवान् को 'योगेवर' कहा है (गी. १८.७५)। परन्तु यह कुछ गीता के योग ' शब्द का मुख्य यर्य नहीं । इसलिये, यह बात स्पष्ट रीति से प्रगट कर देने के लिये, कि'योग' शब्द से कित विशेष प्रकार की कुशलता, साधन, युक्ति अयत्रा उपाय को गीता में विवक्षित समझना चाहिये, उस ग्रन्य ही में योग शब्द की यह निश्चित व्याया की गई ६. - योगः कर्म कौशलम् ” (गीता २.५०) अर्थात् कर्म करने की किसी विशेष प्रकार की मा. लता, युक्ति, चनुराई अथवा शैली को योग कहते हैं। शांकर नाय में भी “कर्मसु कौशलम् " का यही अर्थ लिया गया है-“कर्म में स्वमायसिद रहने- वाले धन को तोड़ने की युक्ति"। यदि सामान्यतः देखा जाय नो एक ही मर्म को करने के लिये अनेक 'योग' और 'पाय' होते हैं। परन्तु उनमें से जो उपाय या साधन उत्तम हो उसी को योग ' कहते हैं। जैसे द्रव्य आर्जन करना एक कर्म है। इसके अनेक उपाय या साधन हैं-जैसे चोरी करना, जालसाजी करना, भीख माँगना, सेवा करना, ऋण लेना, मेहनत करना आदि; यद्यपि धातु के अनुसार इनमें से हर एक को 'योग' कह सकते हैं तथापि यार्य में दिव्य प्रातियोग' बसी उपाय को कहते हैं जिससे हम अपनी " स्वतंत्रता रख कर, मेहनत करते हुप, धर्म प्राप्त कर सकें। जब स्वयं भगवान् ने 'योग' शब्द की निश्चित और स्वतंत्र व्याप्या गीता में कर दी है (योगः कर्मसु कौशलम्-अर्थात् कर्म करने की एकप्रकार की विशेष युक्ति को योग कहते हैं); तब सच पूछो तो इस शब्द के मुख्य अर्थ के विषय में कुछ भी शंका नहीं रहनी चाहिये । पस्नु स्वयं भगवान् को यतलाई हुई इस व्यारया पर ध्यान न दे कर, गीता का मथितार्य भी मन्माना निकला है, अतएव इस श्रमको दूर करने के लिये 'योग' शब्द का कुछ और भी स्पष्टीकरण होना चाहिये। यह शब्द पहले पहल गीता के दूसरे अध्याय में आया है और वहीं इसका स्पष्ट अयं मां बतला दिया गया है। पहले सांख्यशास्त्र के अनुसार भगवान् ने अर्जुन को यह समझा दिया कि युद्ध क्यों करना चाहिये। इसके बाद उन्हों मे कहा कि अब इम