२. मार्क्सवाद और धर्म 88 दानो पक्षवाले-आस्तिक-नास्तिक-साफ ही कह दे कि इस झगडेसे क्या काम ? धर्म-वर्म भी तो लोगोके हितार्थ ही है और यहाँ जीते जी नारकीय यत्रणा भोगके स्वर्ग जाने के बजाय जो यही आराम मिले वही ठोक । आखिर स्वर्गके लिये कोई मरना तो चाहता है नहीं। इसलिये आइये पहले यही लोगो को आराम पहुँचाने के लिये ही कुछ कर ले, लोगोकी तरफसे उनके हकोके लिये लड ले। हम जानते है कि धर्मके ठेकेदार ऐसा नहीं करेंगे। मगर जनसेवक उन्हें ऐसा करनेके लिये मजबूर पयो न करे ? इससे लोगोके सामने उनका पर्दाफाश हो जायगा, ज्योही उनने इसमे आनाकानी या बहानेबाजी शुरू की। हम तो उनसे और दूसरे लोगोसे भी कह देगे कि हमारा विश्वास है कि धर्मवादी लोग शोषको- का ही साथ खामखा देते है-उनके दलाल होते है और कमानेवालोको घोका देते है। फिर ऐसे लोगोका और उनके इस धर्मके सिद्धान्तका विरोध करे न तो और क्या करें ? न वे दूसरी वात कर सकते, सिवाय गोषकोके साथ देनेके और न हम धर्म और ईश्वरके विरोधके जरिये उनका विरोध करने और उनकी जड उखाडनेसे रुक सकते । हाँ, यदि उनकी वात मच्ची है और जनहितको है तो आये पहले यही जनसेवा कर ले । तय माना जायगा कि मरनेपर भी उनका धर्म लोगोको लाभ पहुंचायेगा। यह ऐसी बात है कि लोगोके दिलमे जम जायगो। इनसे धर्माचार्यो- को कलई भी खुल जायगी और लोग उन्हें छोडके हमारे साथ आ जायेंगे। यही होगा। दूसरी वात हो नहीं सकती। इस तरह हम विजयी होगे। यदि कहा जाय कि धर्मवाले लोग भी वर्ग-संघर्ष करेगे, तो यह असभव बात है । वह इक्के-दुक्के कही कुछ भले ही कर ले। मगर सर्वत्र डटके ऐगा कभी कर नहीं सकते। नहीं तो फिर उनका धर्म ही डूब जायगा- उनके धर्मका नारा आधार ही खत्म हो जायगा। यह काम वही कर
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