पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/१२५

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११४ गीता-हृदय और धर्मकी सस्थाये जाल है, धोकेकी चीजें है । इन्हे मालदारोने कमाने- वालोको ठगनेके ही लिये बनाया है। इन्हीके द्वारा भोलीभाली जनताके दिमागमें जहर भरा जाता है। जैसे बच्चोको अफीम खिलाके सुला देते है वही बात पूंजीवादी धर्मके जरिये आम लोगोके बारेमे करते है । उनके दिमाग खराब कर देते है । मासके धार्मिक सिद्धान्तोकी यही बुनियाद है। मार्क्सने जो धर्मका विरोध किया है उसका असली कारण यही है । हमने तो शुरूमें ही यही बात कही थी। यहाँ जो 'वर्तमान' धर्म कहा है, उससे भी यह झलकता है कि एक तो मार्क्सको इन बातोका विरोधी बनाने में यही चीजे कारण हुई, इन्हीकी हरकतोने मार्क्सको इनका- धर्मका बागी बना दिया। दूसरे पीछे या पहले (भूत या भविष्यमें) ऐसे धर्मों या धर्मकी सभावना भी इससे सिद्ध हो जाती है, जिनका विरोध मार्क्सको इष्ट नही है। हमने गोताधर्मके निरूपणमे धर्मका जो रूप गीताको मान्य बताया है वह तो वर्तमान धर्मसे जुदा ही है। इसलिये उसके साथ भी मार्क्सका विरोध नहीं है, ऐसा सिद्ध हो जाता है। जरा और भी सुनिये कि लेनिन क्या कहता है। वह अभी-अभी लिखे गये वाक्योके बाद ही लिखता है कि, "At the same time, however, Engels frequently condemned those who, desiring to be more 'left' or more 'revolutionary' than Social Democracy, attempted to introduce into the programme of the workers' party a direct profession of atheism in the declaring wat on religion In 1874, speaking of the celebrated manifesto issued by the Blanquist refugees from the Commune, who were living exile in London, Engels described their sense of in