२. मार्क्सवाद और धर्म कि असल चीज यह न होके वर्गसंघर्ष ही असल चीज हमारी पार्टीके लिये है, जिसमे आस्तिक-नास्तिक सभी साथ देगे ही। नतीजा यह होगा कि संघर्ष चालू होनेपर ज्यो-ज्यो उसमे सफलता मिलेगी त्यो-त्यो धर्मके ठेके- दारोका पर्दाफाश होता जायगा। फलस्वरूप अन्तमे सभी या अधिकाश मजदूरोकी आस्था धर्मसे खुदबखुद उठ जायगी। वे उसे खुद पूँजीवाद की उपज और करामात समझ उससे घृणा कर बैठेगे और बहुमतसे निर्णय कर देगे कि धर्म-वर्मकी बात ठीक नही। फिर तो सभोको यही मानना ही होगा। हम लेनिनके दो उद्धरण और देके यह विवाद खत्म करेगे। वह अपने लेखके प्राय शुरूमे ही कहता है कि, “ 'Religion is the opium of the people,' said Marx, and this thought is the corner-stone of the whole Marxian philosophy on the question of religion. Marxism regards all modern religions and churches, all religious organisations as organs of bourgeois reaction, serving to drug the minds of the working class and to perpetuate their exploitation." इसका आशय है कि, "मार्क्सने कहा था कि धर्म तो लोगोके लिये अफीम है और उसका यही कहना, यही विचार धार्मिक प्रश्नोके वारेमे मार्क्सके समूचे सिद्धान्त की असली बुनियाद है । मार्क्सके सिद्धान्तके अनुसार आजकलके (modern-यह याद रखनेकी चीज है) धर्म, गिर्जे वगैरह और सभी धार्मिक सस्थाएँ पूँजीवादी प्रतिगामियोके हथकडे है, जिनका इस्तेमाल वे लोग श्रमजीवियोके दिमागोमे जहर भरने और इस तरह उनका शोषण बराबर जारी रखनेके लिये करते है।" यहाँ तो इस बातको खोलके कह दिया है कि वर्तमान धर्म, मठमन्दिर "
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