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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/१२९

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भौतिक द्वन्द्ववाद १२१ मार्क्स यहीपर. यह भी कहता है कि देखो, पूँजीवादी और जमी- दार-~-तुम्हारे शोषक-बड़े काइयाँ है। उनने तुम्हारे लिये अनेक जाल फैलाये है। भगवान और धर्मका कोई भी ताल्लुक इस भौतिक कारबारसे नही होनेपर भी उनने इन्हे खडा करी तो दिया । यह देखो, इन्हीके नामपर तुम्हे ठगते आ रहे है, ठगने चले है । और ये पडित, मौलवी, पादरी, पुरोहित, साधु फकीर ? क्या ये भी ठगते है ? हाँ, हाँ, जरूर ठगते है । ये सबके सब मालदार-जमीदारोके दलाल है। इसीलिये तो खाते तुम्हारा और गुण गाते उनका । बडी चालाकोसे जाल बिछा है। सजग रहो । दूरकी कौडी लाई गई है । ये गुरु, पीर, पडित वगैरह तुम्हे धोका दे रहे है और अत तक धोका देगे। इनकी बातोमे हर्गिज न पडो। तुम जो अपने उद्धारके लिये कटिबद्ध हो रहे हो और द्वन्द्ववादके चलते जो तुम्हारे उद्धारका सामान प्रस्तुत हो गया है उसीसे घबराके मालदारोने ये जाल खडे किये है, ताकि भाग्य और भगवानके फेरमे पडके तुम अपने यत्नमे शिथिल हो जाओ, उससे मुँह मोड लो और मालदार-जमीदारोके घर घीके चिराग जले । फिर तो इन गुरु-पुरोहितो और पादरी-मौलवियोको वे लोग भरसूर बिदाई देगे । मार्क्स और भी कहता है कि यह द्वन्द्ववाद और कुछ नही, केवल वर्गसंघर्ष है । एक वर्ग दूसरेको कल, वल, छलसे दबाके, मिटाके खुद आगे बढना चाहता है। मठ, मन्दिर, तीर्थ, हज्ज, पोथी, पुराण इसी वर्गसंघर्षकी सफलताके साधन है। मालदार-जमीदार तुम्हारे वेतनमे एक पैसा नही बढाते, तुम्हारी दवाका प्रवन्ध नहीं करते और न लगानमे ही कमी करते है। मगर मन्दिरो' और तीर्थोमे लाखो रुपये फूंकते है । क्यो ? वही पैसे तुम्हें क्यो नही देते ? कल-कारखाने तुम्ही चलाते हो न ? खेतीबारी करके उनके लिये गेहूँ-मलाई तुम्ही उपजाते हो न? या कि ये मठ, मन्दिर और तीर्थ वगैरह ? फिर तुम्हे पैसे न