भौतिक द्वन्द्ववाद १२३ मार्क्सवादी हर्गिज इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। उसका तो असली लक्ष्य यह लडाई ही है। इसीके लिये वह आस्तिक-नास्तिकका झगड़ा भी पहले करता था, ताकि रास्ता साफ हो। मगर जब यह युद्ध चल पडा, तो उस झगडेका क्या काम ? उससे तो अब इसमे उलटे बाधा हो सकती है। इसीलिये उसे तिलाजलि दे देता है। हमने इस लम्बे विवेचनसे साफ देख लिया कि भौतिक सघर्ष और वर्गयुद्धमे बाधक होनेके कारण ही मार्क्सवादमे धर्म और ईश्वरका विरोध किया गया है। जब और कोई उपाय नही चला तो जमीदार-मालदारोने इसी आखिरी ब्रह्मास्त्रसे ही काम लेना शुरू जो कर दिया था। वह आज भी यही करते है। यही है धर्म और ईश्वरके विरोधका भौतिक दृष्टिसे और द्वन्द्ववादको दृष्टिसे प्रयोग, या यो कहिये कि भौतिक द्वन्द्ववादकी दृष्टिसे प्रयोग । इससे स्पष्ट है कि यदि इनके करते वर्गसंघर्षमे कोई भी बाधा न हो तो मार्क्सवाद इन्हे छूए भी नहीं। इनके साथ कमसे कम क्षणिक सन्धि तो करी ले। बहुत पहले तो यह बात न थो-वर्गसंघर्षमे ये धर्मादि बाधक न थे, या यो कहिये कि वर्गसंघर्षका यह रूप पहले था ही नही। तो फिर वे बाधक होते भी कैसे ? इधर कुछ सदियोसे ही यह बात हुई है। इसीलिये मार्क्सवादमे "वर्तमान" धर्म (Modern Religion) और धर्मसस्थानोकी ही बात कही गई है और इन्हीको मालदारोका हथकडा वताके विरोध किया गया है। मार्क्सके मतसे जब सभी चीजे बदलती है तो धर्म भी आज बदला हुआ ही यदि मान लिया जाय तो हर्ज क्या ? जो भी धर्म वर्गसंघर्षका जरा भी बाधक हो यदि वह इसी बदले हुएके भीतर ही माना जाय तो इसमे उन क्या , होगा? यदि मार्क्सवादकी दृष्टि धर्म और ईश्वरके सम्बन्धमे भौतिक द्वन्द्व- वादकी न होके कोरी सैद्धान्तिक होती, तो यह बात नही होती। सिद्धान्त-
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