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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/१३५

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दृष्ट और प्रदृष्ट १२७ पोर सडन-मडनमें पड जानेपर खतरा यह है कि मार्क्सवादी भी उसी संद्धान्तिक दृष्टिमे पड जा सकते है । इमीलिये उसे रोकके दोनो दृष्टियो- यो अलग-अलग रखा गया है। मार्क्सवाद कोरे खडन-मडनको पूँजीवादी पोर इसीलिये अपनी विरोधी दृष्टि मानता है, यह बात मार्केकी है । दृष्ट और अदृष्ट यह कहा जा सकता है कि गीताने जव कर्मवादको माना है तो भाग्य या प्रारब्धका सवाल हमारे भौतिक कामोमे भी पाई जाता है । अठार अध्यायके "अधिष्ठान तथा कर्ता"से लेकर "पचं ते तस्यहेतव "(१४,१५) तफ दो श्लोकोमें साफ ही कहा है कि जो कोई भी भला या बुरा काम दिया जाता है उसके पांच कारण होते है, जिनमें एक देव, प्रारब्ध या भाग्य भी है, जिसे तकदीर भी कहते है । गीताने स्वीकार कर लिया है कि प्रारब्धका हाय दुनियाके सभी कामोमे होता ही है। इसमे शककी जगह हई नहीं। फिर तीसरे अध्यायके "यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म- समुद्भवः" (१४) मे भी माफ ही कर्म और यज्ञको वृष्टिके द्वारा अन्नादिके उत्पादनमें और इस तरह भौतिक कार्य चलाने में कारण ठहराया है। चौथे अध्यायके "नाय लोकोऽस्त्ययजस्य" (३१) श्लोकमै भी स्पष्ट ही कह दिया है कि यज्ञके विना इस दुनियाका काम चली नहीं सकता। म अध्यायके ३७से ४८ तकके श्लोकोमे इसी कर्मका नम्बन्ध मनुष्योके जन्म और स्वभावके साथ जोटके ४५वेमे कह दिया है कि "अनेक जन्मोमें पल करने के बाद ही उसका दिल-दिमाग ठीक हो जानेपर मनुष्य मोक्षका भागी होता है"-"अनेक जन्मस मिस्ततो याति परागतिम् ।" इस तरह शामा गम्बन्ध पुनर्जन्मके माय लगा हुअा है और पुनर्जन्मका तो अर्थ और यह भौतिक शरीर । सोलहवे अध्यायके १६, २० श्लोकोमें पातुरी कत्तिपातो दुप्पामाँके फलम्बस्प उनकी दुर्गति और नीच योनियो