हृदयकी शक्ति चीज है यह पहले ही कहा जा चुका है । इसलिये गीताके मतसे ईश्वर हृदयग्राह्य है । फलत' जो सहृदय नही वह ईश्वरको जान नही सकता। हृदयकी शक्ति . अब दूसरी बात रही लोगोके चलानेकी। सो भी ठीक ही है । जिस हृदयने भगवानको जान लिया, पकड लिया, कब्जेमे कर लिया वह दुनिया- को चाहे जिस ओर घुमा सकता है । नरसी, नामदेव, सूर, तुलसी आदि भक्तजनोकी बाते ऐसी ही कही जातो है । बताया जाता है कि भीष्मने कहा कि, "आज मै हरिसो अस्त्र गहाऊँ।" उनने अपने प्रेमके बलसे अपनी प्रतिज्ञा रख ली थी और कृष्णकी तुडवा दी थी। सूरदासने कहा था कि "हिरदयसे जी जाहुगे बली बखानौं तोहि"। रामकृष्णने विवेका- नन्द जैसे नास्तिकको एक शब्दमे आस्तिक बना दिया। वह सच्चे हृदयकी ही शक्ति थी जिसने भगवानको पकड लिया था। इसलिये जिसने शुद्ध हृदयसे श्रद्धाके साथ भगवानको अपना लिया है वह दुनियाको इधरसे उधर कर सकता है। गोताके इस कथनमे एक बड़ी खूबी है । ससारके लोगोको हम तीन भागोमे बाँट सकते है । या यो कहिये कि पहले दो भाग करके फिर एक भागके दो भाग करदेने पर तीन भाग हो जाते है । आस्तिक और नास्तिक यही पहले दो भाग है। फिर आस्तिकके दो भाग हो जाते है साकार ईश्वरवादी और निराकारवादी। इस प्रकार साकारवादी, निराकारवादी और निरीश्वरवादी ये तीन भाग हो गये। हमने देखा है कि ये तीनो ही आपसमे तर्क-दलीले करते और लडते रहते है। यह झमेला इतना वडा और इतना पुराना है कि कुछ कहिये मत । जबसे लोगोको समझ हुई तभोसे ये तीनो मतवाद चल पडे । इनपर सैकडो पोथे लिखे जा चुके है।
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