पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२३६

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२३८ गीता-हृदय कोट, कुर्ते अवयवी । जितने नये सूत जुटते जाते है उतना ही लम्बा कपडा होता जाता है-नया-नया कपडा वनता जाता है। उधर अवयवोके मी अवयव करते-करते कही न कही रुक जाना जरूरी होता है, जहाँसे यह काम शुरू हुआ है । क्योकि अगर कही रुके न और हर अवयवके अवयव करते जायें तो पता ही नहीं लगता कि आखिर अवयवीका वनना कव और कहाँसे शुरू हुआ। इसीलिये जहाँ जाके रुक जायँ उसीको नैयायिकोने परमाणु कहा है। परमाणु (Atom) का अर्थ ही सबसे छोटा, छोटेसे छोटा-जिससे छोटा हो न सके। परमाणुवादके वारेमे और भी दलीलें है। मगर हमे यहाँ उनमे नही पडना है। उनपर कुछ प्रकाश आगे डाला गया है गुणवादके प्रकरणमे । इस प्रकार परमाणुअोके जुटने-सयोग से चीजें बनती रहती है। अब मान लें कि कुछ परमाणुओने मिलके एक चीज बनाई। लेकिन, जैसा कि कह चुके है कि पुराने परमाणुओका निकलना और नयोका जुटना जारी है, जब कुछ और भी परमाणु पुरानोके साथ, जिनने आपसमे मिलके कोई चीज बनाई थी, आ जुटे तो अब जो चीज बनेगी वह तो दूसरी ही होगी। पहली तो यह होगी नही । क्योकि पहलीमें तो नये परमाणु थे नही। इसी प्रकार कुछ सूतोको जुटाकर कपडा वना। मगर सूत तो जुटते ही रहते है। इसलिये नये सूतोको पुरानोके साथ जुटनेपर कपडा भी बनता ही जायगा। हाँ, यह नया होगा, न कि वही पहलेही वाला। क्योकि पहले तो ये नये सूत जुटे न थे। यही हालत बराबर सर्वत्र जारी रहती है। अब यहीपर नैयायिकोकी वह बात आती है कि एक ही स्थानमें दो द्रव्योका समावेश नही हो सकता है। चाहे परमाणुअोवाली बात लें या सूतोवाली। हम हर हालत मे देखेगे कि नये-नये कपडे या नई-नई चीजे वनती जाती है। मगर सवाल तो यह होता है कि जिन सूतोसे पहला कपडा बना है उन्ही के साथ कुछ दूसरोके .