अवतारवाद २५३ यद्यपि अवतारोके शरीरोसे ही, उनके कामोसे ही। फिर भी इसका कारण उन्ही दुराचारियो, दुष्कृत-दुष्ट-लोगोके अपने ही बुरे कर्म मानने होगे। यदि किसीकी लाठीसे सर फूटा या तलवारसे गला काटा तो यह ठीक है कि सर फूटने एव गला कटनेका प्रत्यक्ष कारण लाठी या तलवार है। मगर ऐसे कारणोके सम्पादन करनेवाले वे दुष्कर्म माने जाते है जो पहले या पूर्व जन्ममे ऐसे लोगोने किये थे जिनके सर फूटे या गले कटे । यह तो कर्मोका मोटा-मोटी हिसाब माना ही जाता है । इसलिये अवतारोके शरीरोके निर्माणमे भी इन दुष्ट जनोके ही बुरे कर्म कारण है। पहले कही चुके है कि यदि किसीके शरीरसे दूसरोको कप्ट या आराम पहुंचे तो उनके भी भले-बुरे कर्म उस शरीरके कारण होते है। शरीरवालेके कर्म तो होते ही है । फलत. जिस प्रकार साधारण शरीरके निर्माणमे समष्टि कर्म कारण बनते है उसी तरह अवतारोके शरीरोके निर्माणमे भी। एक बात और भी जान लेनेकी है। यह जरूरी नहीं कि पूर्व जन्मके ही भले-बुरे कर्म वर्तमान जन्मके सुख-दु खोके कारण हो । इसी देहके अच्छे या गन्दे काम भी कारण बन सकते है, वन जाते है । बासी या पुराने ही कर्म ऐसा करे यह कोई नियम नही है। सव कुछ निर्भर करता है कर्मोकी शक्तिपर, उनकी ताकतपर, उनकी भयकरता या उत्तमतापर । इसीलिये नीतिकारोने माना है कि "तीन साल, तीन महीने, तीन पखवारे या तीन दिनो मे भी जवर्दस्त कर्मोके भले-बुरे फल यही मिल जाते है" "त्रिभिर्वस्त्रिभिर्मासैस्त्रिभि पक्षस्त्रिभिदिनै । अत्युत्कट पुण्यपापरि- हेव फलमश्नुते।" इसीलिये तो यह भी कहा जाता है कि "इस हाथ दे, उन हाथ ले।" इसलिये दुष्ट जनोके जिन भयकर कुकर्मोके करते हाहा- कार मच जाता है, बहुत सभव है कि अवतारोके कारण वही हो या वह भी हो । इसी प्रकार महान् पुरुषोके तप और सदाचरण भो, जो उन पापी जनोते नाण पाने के लिये किये जाते है, अवतारोके कारण बन जाते है, . ..
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