पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२५२

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२५४ गीता-हृदय . - बन सकते है । मीमासकोने जानें कितने ही ऐसे कर्म माने है जिनके फल जल्दी ही मिलते है। इस प्रकार समष्टि कर्मों के चलते ही पृथिवी आदिकी ही तरह अव- तारोके शरीर बनते है यह बात समझमें आ जाती है। जो लोग ऐसा सोचते हो कि हमारे भले-बुरे समष्टि कर्म भगवानको नही खीच सकते, क्योकि वह तो सबके ऊपर माना जाता है, उनके लिये तो पहले ही कहा जा चुका है कि कर्मोके अनुसार ही तो भगवानको चलना पडता है। उसे भी कर्मकी अधीनता एक अर्थमे स्वीकार करनी ही पड़ती है । यदि लोगोंके कोंके अनुसार उसे हजार परीशानी उठानी पडती हो, दौड-धूप और चिन्ता फिक्र करनी पडती हो, तो यह तो मामूलीसी बात ठहरी । जव लोगोने ऐमा भी माना है कि भक्तजन भगवानको नचाते है, तो फिर अवतार बनना क्या बडी बात है ? जिनके कर्मोके करते पूर्व वताये ढगसे परमाणुप्रोकी क्रियाये, दौडधूप और चावल, पेड, मनुप्यके शरीर आदि वनना-बिगडना निरन्तर जारी है, अवतारोके शरीर भी उन्हीकी क्रियाओंके भीतर क्यो न आ जायें, उन्हीसे तैयार क्यो न हो जाये ? आखिर ये सारी चीजे होती ही है ससारका काम चलाने के ही लिये न ? फिर यदि अवतारोके बिना कोई काम रुकता हो या न चल सकता हो, तो उनके शरीर भी वैसे कामोके ही लिये क्यो न बन जायेगे? यह ठीक है कि जितनी चीजे बनती है सभी अनिवार्य आवश्यकतामो और जरूरतोके ही चलते । प्रकृति या ससारके भीतर व्यर्थ और फिजूल पदार्थोकी गुजाइश हई नही। बल्कि प्रकृति तो ऐसी चीजोकी दुश्मन है। इसीलिये उन्हे जल्द मिटा देती है। वैसी ही आवश्यकताओं के चलते अवतार भी होते है। यही कारण है कि आवश्यकतानोकी पूत्ति होते ही अवतारोका काम पूरा हो जाता है और उनके शरीर खत्म हो जाते है। किन्हीका काम कुछ देरसे होता है और किन्हीका जल्द । 1