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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२५७

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२६० गीता-हृदय . कणाद दोईने इसे अपना मन्तव्य माना है। दूसरे लोग सिर्फ उनका साथ देते हैं । इमी पक्षको परमाणुवाद (Atomic Theory) कहते है। यह वात पाश्चात्य देशोमे भी पहले मान्य थी। मगर अव विज्ञानके विकासने इसे अमान्य बना दिया। इसी मतको प्रारम्भवाद (Theory of creation) भी कहते है। इस पक्षने परमाणुयोको नित्य माना है। हरेक पदार्यके टुकड़े करते-करते जहाँ रुक जायें या यो समझिये कि जिस टुकडेका फिर टुकडा न हो सके, जिसे अविभाज्य अवयव (Absolute or indivisible particle) कह सकते है उसीका नाम परमाणु (Atom) है। उसे जव छिन्न-भिन्न कर सकते ही नही तो उसका नाम कैसे होगा? इसीलिये वह अविनाशी-नित्य-गाना गया है। परमाणुके माननेमे उनका मूल तर्क यही है कि यदि हर चीजके टुकडोफे टुकडे होते ही चले जायें और कही रुक न जाये--कोई टुकडा अन्तमे ऐसा न मान लें जिसका खड होई न सके तो हरेक स्थूल पदार्थके अनन्त टुकडे, अवयव या खड हो जायेंगे। चाहे राईको लें या पहाडको, जव खड करना शुरु करेंगे तो राईके भी असख्य सड होगे-इतने होगे जिनकी गिनती नहीं हो सकती, और पर्वतके भी असख्य ही होगे। वैसी हालतमें राई छोटी क्यो और पर्वत बडा क्यो? यह प्रश्न स्वाभाविक है । अव- यवोकी संख्या है, तो दोनोकी अपरिमित है, प्रसस्य है, अनन्त है । इसीलिये वरावर है, एकमी है। फिर छुटाई, वडाई कैसे हुई ? इसीलिये उनने कहा कि जब कही, किसी भागपर, रुकेगे और उस भागके भाग न हो सकेंगे, तो अवयवोकी गिनती मीमित हो जायगी, परिमित हो जायगी। फलत राईके कम और पर्वतके ज्यादा टुकडे होगे। इगीलिये राई छोटी हो गई और पर्वत बटा हो गया । उनी सबसे छोटे अवयवको परमाणु कहा है। परमाणुप्रोके जुटनमे ही ममी चीजे वनी । 7