पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२५८

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गुणवाद और विकासवाद २६१ गुणवाद और विकासवाद दूसरा दल गुणवादियोका है। उनके गुणवादको परिणामवाद या विकासवाद (Evolution Theory) भी कहते है। इसे वही तीन दर्शन-वेदान्त, साख्य तथा योग-~मानते है। इनके आचार्य है क्रमश व्यास, कपिल' और पतजलि । ये लोग परमाणुप्रोकी सत्ता स्वीकार न करके तीन गुणोकोही मूल कारण मानते है। इन्हे परमाणुप्रोसे इनकार नहीं। मगर ये उन्हे अविभाज्य नही मानते है। इनका कहना यही है कि कोई भी भौतिक पदार्थ अविभाज्य नही हो सकता है । विज्ञानने भी इसे सिद्ध कर दिया है कि जिसे परमाणु कहते है उसके भी टुकडे होते है। परमाणुवादके माननेमे जो मुख्य दलील दी गई है उसका उत्तर गुणवादो आसानीसे देते है। वे तो यही कहते है कि पर्वतके टुकडे करते- करते एक दशा ऐसी जरूर आ जायगी जव सभी टुकडे राई जैसे ही हो जायेंगे। उनकी संख्या भी निश्चित होगी, फिर चाहे जितनी ही लम्वी हो। अब आगे जो टुकडे हरेक राई जैसे टुकडेके होगे वह अनन्त- असख्य होगे। नतीजा यह होगा कि इन अनन्त टुकडोसे हरेक राई या राई जैसी ही लम्बी-चौडी चीज तैयार होगी, जिसकी सख्या निश्चित होगी। अव यहीसे एक ओर राई रह जायगी अकेली और दूसरी ओर उसी जैसे टुकडोको, जिनकी सख्या निश्चित है, मिलाके पर्वत बना लेगे । इसी- लिये वह बडा भी हो जायगा। फिर परमाणुका क्या सवाल ? गीतामें परमाणुवादकी गन्ध भी नहीं है-चर्चा भी नही है, यह विचित्र बात है। इसीलिये परमाणुवाद और तन्मूलक प्रारभवादकी जगह उनने गुणवाद और तन्मूलक परिणामवाद या विकासवाद स्थिर किया। उनने अन्वेषण करके पता लगाया कि देखनेमे चाहे पृथिवी, जल आदि पदार्थ भिन्न हो; मगर उनका विश्लेषण (Analysis) करनेपर अन्तमे सबोमे तीन +