पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुण और प्रधान सित हो जाती है। जैसे दूध ही दहीके रूपमे परिणत हो जाता है। इस मतमे तीनो गुण ही सभी भौतिक पदार्थोके रूपमे परिणत हो जाते है। कैसे हो जाते है यह कहना कठिन है, असभव है । मगर हो जाते है यह तो ठोस सत्य है । जब परमाणुप्रोको निरवयव मानते है, तो फिर उनका सयोग होगा भी कैसे ? सयोग तो दो पदार्थोके अवयवोका ही होता है न ? जब हम हाथसे लोटा पकडते है तो हाथके कुछ भाग या अवयव लोटेके कुछ हिस्सोके साथ मिलते है। मगर निरवय चीजे कैसे परस्पर मिलेंगी ?"इसीलिये आरभवादको माननेसे इनकार कर दिया गया । क्योकि इस मतके माननेसे दार्शनिक ढगसे पदार्थोका निर्माण सिद्ध किया जा सकना असभव जंचा। गुण और प्रधान सत्त्व, रज, तमको गुण नाम क्यो दिया गया यह भी मजेदार बात है । जब यही सृष्टिके मूलमे है तब तो यही प्रधान ठहरे, मुख्य ठहरे, असल ठहरे, अग्रणी ठहरे । लेकिन इन्हे गुण कहते है । गुण या गौणका अर्थ है अप्रधान, जो मुख्य न हो, अग्रणी न हो। और प्रधान किसे कहा है ? प्रकृतिको, जो इन तीनो गुणोके मिल जानेसे बन जाती है। जब ये तीनो गुण अपनी विषमता छोडके सम रूपसे मिल जाते है, जब इनकी साम्यावस्था हो जाती है तो उसे ही प्रकृति और प्रधान कहते है, हालांकि वह पीछेकी चीज होनेसे गुण या गौण ठहरी । साम्यावस्था ही प्रलयकी अवस्था है। उस दशामे सृप्टिका काम कुछ भी नही हो पाता -सव कुछ खत्म हो जाता है। यद्यपि चौदहवें अध्यायके ५वेसे २५वेतकके श्लोकोमे इन गुणोकी वात विशेष रूपसे कही गई है, तथापि ५-१८ तकके १४ श्लोकोके पढनेसे, अभी जो शका उठी है, उसका उत्तर मिल जाता है। दूसरी भी बातें