पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२८५

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प्रातिमासिक सत्ता २८६ क्या यह अक्लमे आनेकी चीज है ? जिसमे लम्बाई-चौडाई कुछ भी न हो या जो सिर्फ लम्बाई रखता हो ऐसा पदार्थ दिमागमें कैसे घुसेगा? फिर भी उसे मानते ही है। यह ठीक है कि काम चलानेके लिये-केवल वादविवाद और विचारके लिये-वेदान्तने तीन प्रकारके पदार्थ माने है। एक तो सदा रहनेवाला, वस्तुतत्त्व या परमार्थ पदार्थ, जिसे ब्रह्म कहिये या आत्मा कहिये। इसी- लिये ब्रह्म या आत्माकी हस्ती, उसके अस्तित्व या उसकी सत्ताको परमार्थ सत्ता भी कहते हैं। दूसरे है सपने या भ्रमके पदार्थ, जैसे रस्सीमे साँप, सीपमे चाँदी या सपनेका सर कटना। ये जबतक प्रतीत होते है तभीतक रहते है। प्रतीति या ज्ञानको ही प्रतिभास भी कहते है। इसीलिये ये पदार्थ प्रातिभासिक है और इनकी सत्ता है प्रातिभासिक सत्ता। तीसरे है हमारे इस जागृत ससारके पृथिवी आदि पदार्थ, जिनसे हमारा व्यवहार चलता है, काम निकलता है । सपनेके सॉपका जहर तो नही चढता। मगर इस साँपका चढता है। यही है व्यवहार या काम-काजका चलना। ये चीजे काम चलाऊ है, व्यावहारिक है । इसलिये इनकी सत्ताको व्याव- हारिक सत्ता कहते है। इस तरह तीन प्रकारके पदार्थ और उनकी तीन सत्ताये हो जाती है। प्रातिभासिक सत्ता मगर दर हकीकत व्यावहारिक तथा प्रातिभासिक पदार्थ दो नही है। दोनो ही बराबर ही है। यह तो हम अभी सिद्ध कर चुके है। दोनोकी सत्तामे रत्तीभर भी अन्तर है नहीं। इसलिये दोई पदार्थ-पार- मार्थिक एव प्रातिभासिक-माने जाने योग्य है और दोई सत्ताये भी। लेकिन हम लिखने-पढने और वाद-विवादमे जागृत तथा स्वप्नको दो मानके उनकी चीजोको भी दो ढगकी मानते है । यो कहिये कि जागृतको