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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३१४

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३१८ गीता-हृदय . होता है। पनडुब्बी जहाज पानीके भीतर ही चलते है। इसीलिये आज भी पैदल (Infantry), घुडसवार (Cavalry), तोपखाना (Art- illery) जहाजी बेडा (Navy) और हवाई सेना (Airforce) इन पाँच विभागोके बावजूद भी हवाई जहाजकी स्वतत्र हस्ती नही है । वह चारोका ही साथी जरूरतके अनुसार बन जाता है, जैसे पहले तोप- खानेकी बात थी। इससे यह वात निकलती है कि युद्धके लिये सेनाके साधारणत चार विभाग जरूरी होते है । इसी दृष्टिसे प्राचीनोने जीवन संघर्षको ठीक-ठीक चलाने और मानव समाजको उसमें विजयी बनानेके लिये उसके भी चार विभाग किये थे--समाजको चार हिस्सोमे बाँटा था, जिन्हे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र कहते थे और अब भी कहते है। उनने अध्यात्मवाद, पुनर्जन्म और परलोकका भी सिद्धान्त स्वीकार किया था इसीलिये वर्गों के ही कार्योंकी पुष्टि एव सहायताके लिये चार आश्रम भी बनाये गये थे । ये आश्रम विद्यार्जन, तप, समाधि आदिके जरिये चारो वर्गों के लौकिक- पारलौकिक हित साधनमें ही मदद करते थे। गृहस्थ आश्रम' तो साफ ही है । मगर ब्रह्मचर्यका काम था सभी विद्याये पढना तथा वानप्रस्थका था तप और सर्दी-गर्मीको सहन करके समाधिके लिये अपनेको तैयार करना । सन्यासीका काम था ध्यान और समाधिके द्वारा आत्मज्ञानको पूर्ण बनाना। यही लोग गृहस्थो और दूसरोको भी ज्ञानोपदेशके द्वारा कर्मयोगी बनाते थे। वर्णोकी हालत यह थी कि ब्राह्मणका काम था सभी प्रकारके ज्ञानो- को पूरा-पूरा हासिल करना । यहाँ तक कि गृहस्थ लोग ही ज्येष्ठ आश्रमी माने जाते थे। ब्राह्मणका ज्ञान पूर्ण होने पर वही सबोमें-शेष क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तीनोमें-उसका पूरा प्रसार करते थे। इसीलिये सभी वर्गों के गृहस्थ ज्ञान दाता माने जाते थे। अम्बरीषने क्षत्रिय होके भी दुर्बासा