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३३८ गीता-दय अपियोगे लिये गगग चार व प्रा नकाते है और उन्हीके प्राचार्य उन्हें मान नगने । यह तो गौनान्दया लेनक भी नहीं मानते कि सभीने पांची पन्य बनाये।गह अगमवनी। घमं शब्द गैप ग्रन्याक माय होनेमे ग्रयका ती वानर माना जाना भी चाहिये । ग प्रकार इन विस्तृत विवेननने गुणवाद और अद्वनवादके सभी पहनुवापर नशेपमती उनना पलाम लाल दिया कि उनके सम्बन्धकी ताकी नमी वातो नमामे प्रामानी जायगी। उनके मुतल्लिक गीताकी जागान दृष्टि है-तत्त्वज्ञान एवं वास्तविक भक्तिमें जो गीताकी दुप्टिगे तो अन्तर नरीहै, किन्तु दोनोगी एकही-उग बात निरूपणमे इन नीजपर पूग प्रकाग पर गया कि अवैतवाद और जगन्मिथ्यात्व- वादके विधानात्मक पहलू पर ती गीताका विशेष प्रागह गया है।