पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३४८

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१०. शेष बातें गीताधर्मसे सम्बन्ध रखनेवाली सभी प्रमुख बातोपर जहाँतक हो सका हमने अबतक प्रकाश डाला और इस तरह गीतार्थ समझनेका रास्ता बहुत कुछ साफ कर दिया। अब हमे समाप्त करनेके पहले कुछ और भी कह देना है । जो बाते हम अब कहेगे उनका भी ताल्लुक गीताधर्मसे ही है। उनसे भी गीताका आशय समझनेमे बहुत कुछ सहायता मिलेगी, हालाँकि ये बातें इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है जितनी अबतक लिखी गई है। बात असल यह है कि केवल आशय समझना ही जरूरी नहीं होता। श्लोको और पदोके अर्थोंको ठीक-ठीक हृदयगम करना भी आवश्यक होता है। इसके बिना आशय आसानीसे समझमे आ नही सकता। कभी-कभी तो शब्दार्थ अच्छी तरह जाने बिना आशय और भावार्थ कतई समझमें आते ही नही। शब्दार्थके सिवाय भी कुछ बाते होती है जिनसे श्लोकार्थ और श्लोकका आशय समझनेमे आसानी हो जाती है। उन बातोको जाने बिना बडी दिक्कत होती है। कभी-कभी तो चीज उलटे समझी जाती है । एकाध ऐसी भी बाते है जिनसे और कुछ न भी हो तो प्राशयकी गभीरता जरूर मालूम पडती है । इसलिये उनका जानना भी जरूरी है। यही सब बाते लिखके और अन्तम दो-चार शब्दोमें गीता- धर्मका उपसहार करके यह वक्तव्य पूरा करेंगे। इसीलिये इसमे छोटी- मोटी छुटी-छुटाई बातोका ही समावेश पाया जायगा। उत्तरायण और दक्षिणायन गीताके आठवें अध्यायके “यत्र काले त्वनावृत्ति" आदि २३से २७ तकके श्लोकोमे उत्तरायण और दक्षिणायन या शुक्ल और कृष्ण मार्गोका २३