पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३६३

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३६८ गीता-हृदय riment) करके साफ-साफ दिसा-सुना दिया जाय । इस प्रकार अपनी अाग्यो देस लेने, छू लेने या सुन लेनेपर पूरी-पूरी जानकारी हो जाती है, जिमसे वह वात दिल-दिमागमे अच्छी तरह बैठ जाती है। हमने किसीको कह दिया, उराने सुन लिया या कही पढ लिया कि सूतमे कपडा तैयार होता है। इस तरह जो उसे जानकारी हुई वही ज्ञान है । उसके बाद सामने कपडा रसके उसके मूतोको दिसला दिया, तो उसको विज्ञान हुा- विगेप जानकारी हुई। मगर नूतका तानावाना करके उसके सामने ही यदि कपडा बुन दिया तो यह भी विज्ञान हुआ और इसके चलते उसके दिल-दिमागमे यही बात पक्की तौरसे जम जाती है। गीतामे भी शुरके छ अध्यायोमे जिन बातोका निस्पण हुआ है वह तो ज्ञान हुना। मगर उन बातोके प्रकारान्तरसे निस्पण करनेके साथ ही सातवमे सृप्टिके कारणो प्रादिका विशेष विवरण दिया है। आठवेमे अधिभूत आदिके निरपणके साथ ही उत्तरायण आदिका विशेष वर्णन किया है। नवेमे फिर प्रकृतिमे सृष्टि पोर प्रलयके निरूपणके साथ क्रनु, यज्ञ, मन आदिके रूपमे इस सृष्टिको भगवानका ही रूप कहा है । दसवमे इसी बातका विशेष व्योरा दिया है कि सृष्टिकी कौन- कौनसी चीजे सामतीरसे भगवानके स्वरूपमे श्रा जानी है। इस तरह जिस तत्त्वज्ञानकी बात दूसरे अध्यायसे शुरु हुई उसीको पुष्ट करने के लिये इन चारो अध्यायोमे विभिन्न ढगसे बाते कही गई है। सृष्टिके महत्त्वपूर्ण पदार्थोकी ओर तो लोगोका ध्यान खामखा ज्यादा आकृष्ट होता है खुदवखुद । अव यदि उन पदार्थोको भगवानका ही रूप या उन्हीसे साक्षात् बने हुए बताया जाय तो और भी ज्यादा ध्यान उधर जाता है। हम तो कही चुके है कि प्रात्मा, परमात्मा और पिंड, ब्रह्माड इन चारोमे एक ही बुद्धि-सम बुद्धि ही. -तत्त्वज्ञान है। इस निरूपणसे