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४०० गीता-हृदय कहा गया है कि भविष्यमें जो यहाँ मरें उन्हें स्वर्ग मिले इसीलिये जोतना जारी था । अन्तमे इन्द्रने जब यह वरदान दिया कि जाइये यहां तप करने या लडनमें जो मरेगे वह जरूर स्वर्गी होगे, तब उसने जोतना छोडा। इसीलिये कुरुक्षेत्रको धर्मक्षेत्र या धर्मभूमि कहते है। आगे श्लोकोके अर्थमें आवश्यकतानुसार बाहरसे जोडे गये शब्द कोष्ठक में दिये है, यह याद रहे । इसके अलावे कही-कही श्लोकार्थके बाद छोटी-बडी टिप्पणियां भी दी गई है। वे साफ है । पुराने समयमें हाथसे पकडके जिन तलवार आदि हथियारों से हमला करते थे उन्हे शस्त्र कहते थे और जिन तीर आदिको फेंकते थे उन्हें अस्त्र कहते थे। उस समय फौजको भी बल कहते थे।