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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/४३०

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दूसरा अध्याय ४३७ जब समयसे घिरा नही है तब उसे हमेगा रहनेवाला कहनेके मानी क्या है ? इसका सीधा अर्थ है कि वह समूचे समयसे घिरा है। मगर यह वात पहले कथनके विरुद्ध हो जाती है। जो समयसे घिरा न हो वही समूचे समयसे घिरा हो, यह कुछ अजीब-सी बात हो जाती है । वात दरअसल यह है कि हरेक भौतिक पदार्थ कुछ न कुछ समयसे घिरे रहते है--किसी वक्त जनमके कभी खत्म हो जाते है। यह भी वात है कि समय तो उनके जन्मके पहले भी था और खत्म होनेके वाद भी रहता ही है। इसीलिये प्रत्येक भौतिक पदार्थोकी यही वात है कि किसी न किसी समयके ही भीतर रहते हैं। समूचे समयके भीतर कोई भी नही रहता है। मगर आत्मा तो उनसे भिन्न है। क्योकि निपेधकी बात कह चुके है। इसीलिये उसे समूचे समयसे घिरी वस्तु या हमेगा रहनेवाली कह देते है । नकि सचमुच समयका अधिकार उस पर है। इसीलिये शाश्वत शब्द भी निषेधात्मक ही है। यही हालत पुराणकी भी समझिये । पीछे जितने पदार्थ मिलते जाते है सवोका निषेध करते है कि यह आत्मा नहीं है, यह आत्मा नही है । इस तरह पीछे, बढते जाने पर जो पुरानीसे भी पुरानी चीजे मिले उनका भी निषेध करनेके बाद अर्थत यह कह दिया जाता है कि वह तो पुरानो से भी पुरानी है। जव जन्म होता ही नही तो खामखा उसे पुरानेसे भी पुरानी कहना ही पड़ता है। इस तरह अज और पुराण शब्द पीछेकी तरफ जाके आत्माको ढूँढते और उसकी ओर इशारा करते है। उत्तरार्द्धका 'न हन्यते' आगेकी तरफ जाके ढूँढता और इशारा करता है और नित्य एव शाश्वत शब्द बीचमे रहके वही काम करते हैं। जैसे आवश्यकता पड़ने पर यदि कोई चूहा किसीको विल्लीका परिचय कराना चाहे तो विल्लीके निकट तो वह जा सकता नही, किन्तु दूरसे ही इशारा करता है कि देखा वह है, वह, या जैसे उल्लूपक्षी सूर्यकी ओर इशारा करे; ठीक उसी तरह बुद्धि प्रात्माकी ओर