पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/४३२

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दूसरा अध्याय ४३६ था ? जन्म-मरण नये-पुराने कपडे बदलने जैसी ही वाते है । जव ताजेसे ताजे कपडोको भी खुशी-खुशी छोडके एकदम नये कपडे पहननेमे लोग प्रानन्द मनाते है तो मरनेमे गम क्यो मनाया जाय ? यह तो उलटी बात होगी। इस श्लोकमें 'जीर्ण' शब्दका फटा-पुराना अर्थ नही है। नये शरीरोका भी तो त्याग होता ही है और नये कपडोका भी। महाभारतमे अभिमन्यु जैसा कोरा जवान भी तो मारा गया था। तो क्या उसके बारेमे कोई और सिद्धान्त लागू होगा ? या कि उसके सम्वन्धमे गम मनाना ही ठीक यह बाते तो ठीक नहीं । इसलिये जीर्ण शब्दका अर्थ है त्यागनेके योग्य या जिसके त्यागनेका समय आ गया हो । 'ज' धातु, जिससे यह शब्द बना है, का अर्थ भी वयकी हानि ही है, यानी अवस्था--उम्रका पूरा हो जाना । जिसे छोडेगे उसकी अवस्था तो छोडनेवालेके लिहाजसे पूरी होई जाती है। या नही तो, यो समझे कि अधिकाश लोग तो पुराने ही थे। इसीलिये जीर्ण शब्द प्रयुक्त हुआ है । मगर पहली ही बात ज्यादा युक्तिसगत लगती है। दूसरी बात है नये शरीरके ग्रहण करने या जन्म लेनेकी। कोई ऐसा मान सकता है कि पुरानेके छोडने और नये कपडेके पहननेमे तो देर नहीं लगती। किन्तु छोडनेके वाद फौरन ही नया पहन लेते है । बीचमे समय गुजरने पाता ही नहीं। जब यही उदाहरण दिया गया है मरने और जनमनेका, तव तो नया जन्म भी फौरन ही होना चाहिये। वीचमे जरा भी समय नहीं लगना चाहिये । लेकिन यह समझ गलत होगी। कपडेका दृष्टान्त केवल इसी मानीमे दिया है कि एक तो कपडे- वालेकी ही तरह शरीरवाला--देही-जीव शरीरसे जुदा है। दूसरे वह पुराने शरीरको छोडके नयेको खुशीसे स्वीकार करता है। बस । इससे आगे दृष्टान्तका कोई भी मतलव नही है । नही तो हमे यह भी मानना पड़ जायगा कि जैसे धोती वगैरहके वदलनेमे ऐसा होता है कि