पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/५२७

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५३६ गीता-हवय पटगट बालाना। उन्हें नीचा दिखानने निये यहाँ तक किया कि उनमें मुगरि, नगवन सानि नामी प्रगं नक उगने बदल दिय, उन्हें चान्दानी मगेटा बतागा, वगंत वगन । मंगर यह हिम्मत तो उगे भी न हुई कि गहाले किगण व्यभिनारी था, उगर्ने गोपियोके माय गरन की, बदमागीली । हिउगे जग भी गन्य इन बातयो मालूम होती तो ऐना पग्नेन वह गिग न नृगता। फिर तो तिलगा तान बना छोडना । मगे पट. पणका चरित इनना ऊँना था कि उनके पट्टन्मे भी गट्टर दुगन नापो यर निमात न गी कि इस बारेमें जवान भी खोले । यदि गोपियोगी गगनीलामी गन्ध भी उग ममय होती तो शिनुपात गया पया न कर पालता, माह डालता ? इमलिये मानना होगा कि उस समय इनका नाम भी न था, गर्ना भी न थी। यह बान पीछे जुटी है, जोती गई है। श्री गुमारिलकी लिली नपातिक नामकी मीमासाकी पोयीकी एक महत्त्वपूर्ण गां भी इस मामलेमे प्रकाश डालती है। मीमासा- दगंनो गूगो पर जो गवर भाप्य है उगीकी टीकाका नाम तत्रवार्तिक है। ग्गा भट्टपार गुमारिलती सगनी टीका तीन भागोमें बेटी है । पहले अध्यायके प्रथम पादपी टीकाका नाम है श्लोकवार्तिक । उस अध्यायके शेषको लेकर नीगरे अध्यायके अन्त तफको टीकाको ही तमवात्तिक कहते है। गंपागकी टीका कही जाती है टुप्टीका । उसी तयवार्त्तिकमे प्रथमा- ध्यायये तीगरे पादके सातवें मुत्र "अपिया कारणाग्रहणे प्रयुक्तानि प्रतीयेर- ग्निति व्याग्यानमें एक स्थान पर नास्तिककी 'शकाके रूपमे लिखा है कि हिन्दू लोग जिस कृष्णको महान् पुरुष मानते है उनकी हालत यह थी कि शराब पीते थे । उनने मामाकी तडकीसे शादी भी की थी। दरअसल गगिमणी उनके मामूकी ही तो पुगी थी। इस प्रकार धर्माचार्यों और अवतारो पर एके बाद दीगरे दोपारोपण करके सनातन धर्मकी निन्दा की