पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/५४४

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तीसरा अध्याय यो तो असली डेरा मन ही है । इस प्रकार तीन अड्डे हो गये । लिखा है भी कि इन तीनोकी मददसे ही देहके मालिक-देही--यात्माको यह काम भटका देता है। अव रहा इसे खत्म करनेका उपाय । असली वला तो इन्द्रियाँ ही है। न वे बाहर मनीरामको जाने देगी और न कामना होगी। इसलिये यह तो आसानीसे जाना जा सकता है कि इस तरफ पहला कदम जो वढेगा वह इन्द्रियोपर नियत्रण, अकुश या कब्जा रखनेसे ही शुरू होगा। इसी- लिये कह दिया है कि इन्द्रियोको सबसे पहले विना सोचे-विचारे ही आँख मंदके कब्जेमे करो। उसके बाद प्रागेका उपाय सोचो। ऐसा कहनेका यह अर्थ कभी नही है कि सिर्फ इन्द्रियोको रोक कर ही इसे खत्म करेगे । नब तो आगेके श्लोकोमे कही बाते वेकार हो जायेगी। केवल इन्द्रियोके रोकनेसे यह मर भी नहीं सकता। इसके दूसरे भी तो अड्डे है और वही अमली है--बुनियादी हैं । विना मन और बुद्धिको वगमे किये इन्द्रियाँ मोलह पाने वगमे हो भी नहीं सकती है। इसीलिये हमने कहा है कि उनका रोकना नीव या श्रीगणेशायनम ही समझिये । असली उपाय यह बताया है कि इन्द्रियाँ शरीर और अन्य पदार्थोसे बडी या उनके ऊपर है। वही शरीरको दौडाती रहती है। सिनेमा, गान, भोजमे खीच ले जाती है । यद्यपि विपय इन्द्रियोको भी खीचते है । नथापि उन्हे यहाँ छोड दिया है। क्योकि अड्डोको ही पकड़ना था। इन्द्रियोके ऊपर मन और मनके ऊपर बुद्धि । आत्मा तो सभीका मालिक है। देहम ही ये सब है और देही वही है । यह वात पहले अच्छी तरह समझाई जा चुकी है । अव काम यो होता है कि पहले अात्माका तत्त्वज्ञान प्राप्त करते है। फिर बुद्धिमे उनके प्रानन्दका अनुभव करते है। इस नाह वलियो उनम फेना देनेपर-योकि वह प्रानन्द हई ऐसा कि एक वार मजा धानेपर वृद्धि यहाँमे हट सक्ती ही नहीं-मन भी उधर ही