चौथा अध्याय काम इतनेसे ही पूरा हो जाता है। असली और मुख्य जो दो बाते गीताकी है वे इन्ही दोनोमे आ गई है। यह ठीक है कि इनके कुछ पहलू छूटे है और उन्हीका निरूपण आगेके ४, ५, ६ अध्यायोमे हो जानेपर शेष गीतामे इन्ही बातोका स्पष्टीकरण करके १८३मे उपसहार किया है। इस दृष्टिसे तीसरे अध्यायके अन्तमे ज्ञानविज्ञान का उल्लेख महत्त्वपूर्ण है। उससे पता चलता है कि जिस ज्ञान और विज्ञानकी बात आगे पुनरपि सातवे अध्यायमे शुरू होती है और नवेमे फिर जिसका जिक्र करते है वही गीताकी असल चीज है । उसके वर्णन दूसरे और तीसरे अध्यायोमे मुख्यतया आ भी चुके है । हाँ, जो कुछ उनके खास पहलू बचे थे उन्हीका आगे छठे अध्याय तक निरूपण है, विवेचन है। हाँ, तो पिछले अध्यायोके उपदेशोसे अर्जुनको कुछ खास बाते भी मालूम हो गईं जिनका उसे स्वप्नमें भी खयाल न था। आत्माकी अजरता, अमरता और अविनाशिताका जो सुन्दर से सुन्दर वर्णन हुआ है और मरण-जीवनको जिस अपूर्व ढगसे बताया गया है कि दरअसल ये क्या है, उनने उसकी आँखे खोल दी। उसने एक नई दुनिया ही सचमुच देखी जिसकी कभी आशा भी न थी। मगर इससे भी निरालापन तीसरे अध्यायमे और दूसरेके मध्यमे भी उसने कर्मके बारेमे पाया। जाने कहॉकी अलौ- किक बाते और खूबियाँ मालूम हुईं। खासकर कर्मका जो सर्वांग रहस्य उसके सामने पूरे ब्योरेके साथ आ गया उसका तो उसे सारे पोथीपुराणो और वैदिक ग्रथोके मथनसे भी भाभास तक न मिल सका था। इस मामूलीसे कर्मके भीतर इतनी बारीकियाँ छिपी है यह जानके स्वभावत वह आश्चर्य- चकितसा हो रहा है यह बात कृष्ण भी ताड गये थे। वह सोचता था कि इसमे अभी जाने और कितने बाते होगी। मगर उसे ताज्जुब था कि इतनी महत्त्वपूर्ण बाते लोगोको अबतक मालूम क्यो न थी ! यदि किसी एकको भी मालूम होती तो वह जरूर ही कह-सुन गया होता, लिख-
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