पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/६४०

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सातवाँ अध्याय ? या प्रात्माके विना सभी पदार्थ विखर जायंगे और यह जगत् रही न जायगा । सूतकी तरह परमात्माने ही सव पदार्थोंको पकड रखा है, रोक या धर रखा है। आखिर आत्मा तो सभीकी होती है न फलत उसके विना कोई चीज रहेगी ही कैसे ? इसलिये वही सबोको जरूर ही धारण करने- वाली है। यह बात भी पहले खूब बता चुके है। अागेके पॉच (८-१२) श्लोकोमे थोडा-सा नमूनेके तौर पर इस बातका विवरण दिया गया है कि परमात्मा या आत्मा सतकी तरह पदार्थोमे कैसे व्याप्त है, पदार्थ उनमे पिरोये हुए है। इसका विशेष विवरण कुछ तो नवे (१६-१६) और बहुत अधिक दसवे अध्यायमे दिया गया है। जो भी हो, इस विवरण के पन्नेसे मालूम पडता है कि या तो कोई विशेषज्ञ और पूरा जानकार आदमी किसी पाठशालेमे बैठके अपने शिप्योको यह वात समभा रहा है कि किस प्रकार औक्सीजन और हाईड्रोजनके मिलाने- से, सयोगसे ही पानी बनता है, इसीलिये इन दो अदश्य वायुवोके अलावे पानीकी कोई स्वतन सत्ता नहीं है, हस्ती नहीं है, या कोई वेदान्ती जिज्ञासुग्रो एव मुमुक्षुओको बता रहा है कि सपनेमे जितनी चीजे नजर अाती है, जो भी पदार्थ देखे जाते है, वह देखनेवालेसे वस्तुत जुदा है नही, हालॉ कि जुदा तो साफ ही मालूम होते है। इसीलिये जागने पर देखने- वालेके सिवाय और कुछ भी पाया जाता नहीं। सिर्फ नीदके ही करते यह सारा तुफान और प्रपच बन गया होता है । क्योकि दर असल नीदके ही चलते उस देखनेवाले को होश नही रहता, उसे अपनी सुधबुध नही रहती। इसीलिये दुनिया भरकी अटसट चीजे वातकी वातमे यो ही रच-बनाके देखता-सुनता है । ठीक उसी तरह भगवानकी मायाके ही करते उसे भी पापा विसर जैसा गया है । फलत सपनेकी तरह सारे जगत्को यो ही वातकी बातमे बनाके देख रहा है। नहीं तो दरअसल उसके अलावे और कुछ है वै नहीं। इसीलिये जैसे नीदके पहले कोई चीज न रहने पर