पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/६७४

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नवाँ अध्याय सातवें अध्यायमे ज्ञान-विज्ञानका निरूपण शुरू करके जिन पचभूत आदिका उल्लेख किया था उन्हीको अध्यात्म, अधिभूतादिके रूपमें कहके उस अध्यायका उपसहार किया गया है। यो कहिये कि अध्यात्म आदिके रूपमे हजारो पदार्थोमेसे कुछ एकको ही नमूने के तौर पर वहां दिया गया है। शेपका अन्वेषण विचार एव मनन करनेवाले उसी तरह कर सकते है । इमी सिलसिलेमे अर्जुनने अध्यात्म आदिके वारेमें शका उठा दी कि यह क्या चीजे है और शरीरमे इनका पता है या नही ? उसीके उत्तरमें समूचा आठवां अध्याय पूरा हो गया। इससे अर्जुनको सन्तोष भी हो गया कि दरअसल बात है क्या । ऐसी दशामे पाठवे अध्यायके बाद हम फिर सातवे अध्यायके ही मुख्य विषय ज्ञान-विज्ञान पर स्वभावत पहुंच जाते है । क्योकि प्रासगिक वात पूरी हो जाने पर मूल विषयका मौका खुदवखुद आ जाता है । यही कारण है कि नवा अध्याय इसी वातको लेके ही शुरू होता है । फलत उसके पहले ही श्लोकमे ज्ञान-विज्ञान पुनरपि आ गया है। शायद उसका महत्त्व अर्जुनके दिमागमे अच्छी तरह न आया हो। अतएव इस सम्बन्धमें बहुत ज्यादा माथा-पच्ची करना भी वह पसन्द न करे। इसी वजहसे इसी ज्ञान-विज्ञानको राजविद्या और राजगुह्य नाम देके इसकी महत्ता दिखानी पडी। विद्याअोके राजाको राजविद्या और गुह्यो या गोपनीय (secret) पदार्थोके राजाको राजगुह्य कहते है। राजाका अर्थ है सर्दार या शिरोमणि । इसका मतलब यह है कि जितनी भी गुप्तसे गुप्त वाते जानी जा सकती है उन सबोकी अपेक्षा यह चीज कही महत्त्व रखती