पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/६७३

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पाठवाँ अध्याय 1 जबतक उन्हे पढा न जाय । नही तो कोई उन्हे पढेगा क्यो ? वेद तो हई और सभी लोगोको महान् पुण्य यो ही मिल जायगा इस अध्यायका श्रीगणेश ही हुआ है सातवे अध्यायके अन्तकी बातको लेकर। वह बात ब्रह्मसे ही शुरू होकर कइयोको शामिल कर लेती है । उसी ब्रह्मको अक्षर भी कहा है। समूचे अध्यायमे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसे अक्षर ब्रह्मका ही निरूपण है। उसीके ज्ञानका अन्तमें उपसहार भी है । अतएव ठीक ही अक्षर ब्रह्म ही इस अध्यायका विषय है। उसी अक्षर ब्रह्मको तारक ब्रह्म भी कहते है । तारनेसे ही तारक कहा जाता है । इति श्री० अक्षरब्रह्मयोगो नामाष्टमोऽध्यायः ॥८॥ श्रीमद्भगवद्गीताके रूपमें जो श्रीकृष्ण और अर्जुनका सवाद है उसका अक्षरब्रह्मयोग नामक आठवाँ अध्याय यही है।