पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/७२०

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७४० गीता-हृदय है। अग्नि, वाय, जल या मिट्टीमे ही शुद्धि होती है और ये सभी क्रियाशील है। इसीलिये गोधको या क्रियाशीलोमे वायुकी प्रधानता मानी गई है। इसी तरह रामका अर्थ दशरथपुत्र ही है, न कि परशुराम । यह ठीक है कि प्रसिद्ध शस्त्रवारी परशुराम ही माने जाते है । मगर उन्हे भीष्मने पछांडा था । दशरथपुन रामसे भी वह हारे थे। शस्त्रधारण क्षत्रियोका ही काम है भी। इसीलिये दशरथपुन रामको ही यहां लेना ठीक है । उस समय यह काम ब्राह्मणोके लिये उचित नहीं माना जाता था, यह भी इससे सिद्ध हो जाता है। वेदोमे सामवेदकी प्रधानताकी वात २२वेमें और ३५वेंमे वृहत्सामकी बात है। यह ठीक है कि ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। मगर साम तो गान है। मालम होता है यह ज्ञान उस समय ज्यादा प्रचलित था। इसीलिये सामगानके यज्ञायज्ञी, वृहत्, रथन्तर आदि अनेक प्रकारोका भी उल्लेख इशारेसे करके उन सोमे बृहत्सामको ही श्रेष्ठ माना है। सामकी ही प्रसिद्धि उस समय थी, यही इससे सिद्ध होता है। हाँ यहाँ जो "तेजस्तेजस्विनामहम्" (१०॥३६) कहा है वही सातवें अध्याय (७११०) मे भी ज्योका त्यो पाया है। वहाँ का प्रसग देखनेसे पता चलता है कि वह लडने-भिडनेवाला तेज नहीं है । क्योकि लडनेमें काम तथा राग होते ही है और वहां इसीकी रोक है। फलत ब्रह्मतेज या ब्रह्मवर्चस आदिसे ही वहां मतलब है। क्षत्रियादिमें भी यह तेज होता ही है। हाँ, यहाँ लडने-भिडनेवाले ही तेजसे तात्पर्य है, पूर्वापरसे यही पता लगता है। ३४वेमे जो कीर्ति आदिको स्त्री कहा है उससे,पता चलता है कि कभी ये आदर्श स्त्रियाँ ही थी जिन्हे आज निर्गुणके रूपमें ही माना जाता है । पुराणोमे ये दक्ष प्रजापतिकी पुत्रियां मानी गई है। चाहे जो हो, पहले ये आदर्श स्त्रियाँ अवश्य थी। इससे यह भी इशारा है कि साधारण