पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/८२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८४२ गीता-हृदय . - चिन्तामपरिमेया च प्रलयान्तामुपाश्रिताः । कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता.॥११॥ प्राशापाशशतंबंद्धा. कामक्रोधपरायणाः। ईहन्ते फामभोगार्थमन्यायेनार्थसचयान् ॥१२॥ मरणतक कायम रहनेवाली वेहिसाव फिनमे ड्वे हुए, 'खामो-पीओ, मौज करो' यही जिनका सब कुछ निश्चय है, सैकडो आशाअोके फन्देमें फंसे हुए तथा विपयोंके भोगमे ही लिपटे हुए (ऐसे लोग) अन्यायसे ही वन-सचयका यत्न करते रहते है ।११११२। इदमद्य मया लब्धमिम प्राप्स्ये मनोरथम् । इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनधनम् ॥१३॥ असौ मया हतः शत्रुहं निष्ये चापरानपि । ईश्वरोऽहमह भोगी सिद्धोऽह बलवान् सुखी ॥१४॥ पाढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया । यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता. ॥१५॥ अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता । प्रसक्ता. कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥१६॥ यह चीज तो आज मैने हामिल कर ली, यह (दूसरी) भी पा लूंगा ही, इतना धन तो मेरे पाम हई (और) यह और भी मिली जायगा, अमुक गनु नो गने खत्म करी दिया, दूसरोको भी मार डालूंगा, मैं सबका मालिक है मै ही भोग करनेवाला हूँ । नव नरहले सपन्न, बलवान और सुखी भी में ही हैं। धनी हूँ, कुलीन है। मेरे ममान और कौन है दान दूंगा और मौज कगा। इसी तन्हको भूल-भुलयांमें (वे लोग) पटे रहते है। (इम तन्ह) अनेक (वाहियात) खयालोमे ही भूले, मोहके 7 यज कम्गा,