पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/९१५

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अठारहवाँ अध्याय ९३५ श्रीमद्भगवद्गीताके रूपमे उपनिषद रूपी ब्रह्मज्ञान-प्रतिपादक योग- शास्त्रमे जो श्रीकृष्ण और अर्जुनका सवाद है उसका मोक्षसन्यासयोग नामक अठारहवाँ अध्याय यही है । कुछ लोगोने 'इति'का अर्थ 'समाप्त हुआ' ऐसा किया है। मगर सच पूछिये तो उसका अर्थ है 'यह' । यह पहले कही गई वातकी ही ओर इशारा करके उसीको याद करता है। "इत्यह वासुदेवस्य” (१८७४) तथा "इति ते ज्ञानमाख्यातम्" (१८१६३) आदिमे सर्वत्र यही अर्थ इति शब्दका माना गया है। हमने यही लिखा भी है। समाप्ति तो अर्थसिद्ध चीज है, न कि शब्दार्थ और वह भी कुछ जंचती नहीं है। इसीसे हमने उसे छोड दिया है।