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बोहनी
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है तो मैं भला किस खेत की मूली हूँ। तमोली ने अगर चूना ज्यादा कर दिया तो कत्था और ले लिया, उस पर उसे एक डाँट भी बतायी, आँसू पुँछ गये। मुसीबत का सामना तो उस वक्त होता है, जब किसी दोस्त के घर जाय। पान अन्दर से आया तो इसके सिवाय कि जान-बूझकर मक्खी निगले, समझ-बूझकर जहर का घूँट गले के नीचे उतारे और चारा ही क्या है। शिकायत नहीं कर सकते, सभ्यता बाधक होती है। कभी-कभी पान मुँह मे डालते ही ऐसा मालूम होता है, कि जीभ पर कोई चिनगारी पड गयी, गले से लेकर छाती तक किसी ने पारा गरम करके उँड़ेल दिया, मगर घुटकर रह जाना पड़ता है। अन्दाजे में इस हद तक ग़लती हो जाय यह तो समझ मे आनेवाली बात नहीं। मैं लाख अनाडी हूँ लेकिन कभी इतना ज्य़ादा चूना नही डालता, हाँ दो-चार छाले पड़ जाते है। मैं तो समझता हूँ, यही अन्तःपुर के कोप की अभिव्यक्ति है। आखिर वह आपकी ज्यादतियों का प्रोटेस्ट क्योंकर करे। खामोश बायकाट से आप राज़ी नहीं होते, दूसरा कोई हथियार उनके हाथ मे है नहीं। भवों की कमान और बरौनियो का नेजा और मुस्कराहट का तीर उस वक़्त बिलकुल कोई असर नहीं करते। जब आप आँखे लाल किये, आस्तीने समेटे इसलिए आसमान सर पर उठा लेते है कि नाश्ता और पहले क्यों नहीं तैयार हुआ, तब सालन मे नमक और पान में चूना ज्यादा कर देने के सिवाय बदला लेने का उनके हाथ मे और क्या साधन रह जाता है।

खैर, तीन-चार दिन के बाद एक दिन मै सुबह के वक़्त तम्बोलिन की दुकान पर गया तो उसने मेरी फ़रमाइश पूरी करने में ज्य़ादा मुस्तैदी न दिखलायी। एक मिनट तक तो पान फेरती रही, फिर अन्दर चली गयी और कोई मसाला लिये हुए निकली। मै दिल में खुश हुआ कि आज बडे विधिपूर्वक गिलौरियाँ बना रही है। मगर अब भी वह सड़क की ओर प्रतीक्षा की ऑखों से ताक रही थी कि जैसे दुकान के सामने कोई ग्राहक ही नहीं और ग्राहक भी कैसा, जो उसका पड़ोसी है और दिन में बीसियों ही बार आता है! तब तो मैने ज़रा झुँझलाकर कहा--मै कितनी देर से खड़ा हूँ, कुछ इसकी भी खबर है?

तम्बोलिन ने क्षमा याचना के स्वर मे कहा--हाॅ बाबू जी, आपको देर तो बहुत हुई लेकिन एक मिनट और ठहर जाइए। बुरा न मानिएगा बाबू जी, आपके की बोहनी अच्छी नहीं है। कल आपकी बोहनी हुई थी, दिन में कुल छ: आने की बिक्री हुई। परसों भी आप ही की बोहनी थी, आठ आने के