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गुप्त धन
 

करो, यार-दोस्तों से मिलो, सबसे मुहब्बत से पेश आओ, बारूद उड़ाने का नाम त्योहार नहीं है।

रात को बारह बज गये थे। किसी ने दरवाजे पर धक्का मारा। गजेन्द्र ने चौंककर पूछा--यह धक्का किसने मारा?

श्यामा ने लापरवाही से कहा--बिल्ली-विल्ली होगी।

कई आदमियों के फट फट करने की आवाजें आयीं, फिर किवाड़ पर धक्का पड़ा। गजेन्द्र को कँपकॅपी छूट गयी, लालटेन लेकर दराज से झाॅका तो चेहरे का रंग उड़ गया--चार-पाॅच आदमी कुर्ते पहने, पगड़ियाँ बाॅधे, दाढियाँ लगाये कधे पर बन्दूके रखे, किवाड़ को तोड़ डालने की जबर्दस्त कोशिश में लगे हुए थे। गजेन्द्र कान लगाकर उनकी बाते सुनने लगा--

'दोनो सो गये है, किवाड तोड डालो, माल आलमारी में है।'

'और अगर दोनों जाग गये?'

'औरत क्या कर सकती है, मर्द को चारपाई से बाॅध देगे।'

'सुनते हैं गजेन्द्र सिंह कोई बड़ा पहलवान है।'

'कैसा ही पहलवान हो, चार हथियारबन्द आदमियो के सामने क्या कर सकता है।'

गजेन्द्र के काटो तो बदन मे खून नहीं! श्यामदुलारी से बोले--यह डाकू मालूम होते हैं। अब क्या होगा, मेरे तो हाथ-पॉव कॉप रहे है!

'चोर-चोर पुकारो, जाग हो जायगी, आप भाग जायँगे। नहीं मै चिल्लाती हूँ। चोर का दिल आधा।'

'ना ना कहीं ऐसा गजब न करना। इन सबों के पास बन्दूके है। गाँव में इतना सन्नाटा क्यों है? घर के आदमी क्या हुए?'

'भइया और मुन्नू दादा खलिहान मे सोने गये है, काका दरवाजे पर पड़े होंगे, उनके कानों पर तोप छूटे तब भी न जागेगे।'

'इस कमरे में तो कोई दूसरी खिड़की भी तो नहीं है कि बाहर आवाज़ पहुँचे। मकान है या कैदखाने।'

'मैं तो चिल्लाती हूँ।'

'अरे नहीं भाई, क्यों जान देने पर तुली हो। मै तो सोचता हूँ, हम दोनो चुप साधकर लेट जायें और आँखे बन्द कर ल। बदमाशों को जो कुछ हो ले जायें, जान तो बचे। देखो किवाड़ हिल रहे हैं। कही टूट न जायँ। हे