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गुप्त धन
 

एक ने अपने साथी से कहा--मै इस लौड़े को पकड़े हुए हूँ, तुम औरत के सारे गहने उतार लो।

दूसरा बोला--इसने तो आँखे बन्द कर लीं। अरे, तुम ऑखे क्यों नही खोलते जी?

तीसरा--यार, औरत तो हसीन है !

चौथा--सुनती है ओ मेहरिया, जेवर दे दे नही गला घोट दूॅगा।

गजेन्द्र दिल मे बिगड़ रहे थे, यह चुडैल जेवर क्यों नही उतार देती।

श्यामदुलारी ने कहा--गलाघोंट दो, चाहे गोली मार दो, ज़ेवर न उतारूॅगी।

पहला--इसे उठा ले चलो। यों न मानेगी, मन्दिर खाली है।

दूसरा--बस यही मुनासिब है, क्यों रे छोकरी, हमारे साथ चलेगी?

श्यामदुलारी--तुम्हारे मुँह में कालिख लगा दूँगी।

तीसरा--न चलेगी तो इस लौड़े को ले जाकर बेच डालेगे।

श्याम--एक-एक के हथकड़ी लगवा दूँगी।

चौथा--क्यों इतना बिगड़ती है महारानी, जरा हमारे साथ चली क्यो नहीं चलती। क्या हम इस लौडे से भी गये-गुजरे है। क्या रह जायगा, अगर हम तुझे जबरर्दस्ती उठा ले जायॅगे। यों सीधी तरह नहीं मानती हो। तुम जैसी हसीन औरत पर जुल्म करने को जी नही चाहता।

पाॅचवाॅ--या तो सारे जेवर उतारकर दे दो या हमारे साथ चलो।

श्यामदुलारी--काका आ जायॅगे तो एक-एक की खाल उधेड़ डालेगे।

पहला--यह यों न मानेगी, इस लौडे को उठा ले चलो। तब आप ही पैरो पड़ेगी।

दो आदमियो ने एक चादर से गजेन्द्र के हाथ-पाँव बाॅधे। गजेन्द्र मुर्दे की तरह पड़े हुए थे सॉस तक न आती थी, दिल में झुँझला रहे थे--हाय कितनी बेवफ़ा औरत है, जेवर न देगी चाहे यह सब मुझे जान से मार डाले। अच्छा जिन्दा बचूँगा तो देखूँगा। बात तक तो पूछूँ नहीं।

डाकुओं ने गजेन्द्र को उठा लिया और लेकर ऑगन में जा पहुॅचे तो श्यामदुलारी दरवाजे पर खड़ी होकर बोली--इन्हे छोड़ दो तो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूॅ।

पहला--पहले ही क्यों न राजी हो गयी थी। चलेगी न?

श्यामदुलारी--चलंगी। कहती तो हूँ।