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स्वॉग
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तीसरा--अच्छा तो चल। हम इसे छोड़े देते है।

दोनो चोरों ने गजेन्द्र को लाकर चारपाई पर लिटा दिया और श्यामदुलारी को लेकर चल दिये। कमरे में सन्नाटा छा गया। गजेन्द्र ने डरते-डरते आँखे खोली। कोई नजर न आया। उठकर दरवाजे से झाँका। सहन में भी कोई न था। तीर की तरह निकलकर सदर दरवाजे पर आये लेकिन बाहर निकलने का हौसला न हुआ। चाहा कि सूबेदार साहब को जगाये, मुॅह से आवाज़ न निकली।

उसी वक़्त कहक़हे की आवाज आयी! पॉच औरते चुहल करती हुई श्यामदुलारी के कमरे मे आयीं। गजेन्द्र का वहाँ पता न था।

एक--कहाॅ चले गये?

श्यामदुलारी--बाहर चले गये होगे।

दूसरी--बहुत शर्मिन्दा होगे।

तीसरी--डरके मारे उनकी साॅस तक बन्द हो गयी थी।

गजेन्द्र ने बोलचाल सुनी तो जान मे जान आयी। समझे शायद घर मे जाग हो गयी। लपककर कमरे के दरवाजे पर आये और बोले--ज़रा देखिए श्यामा कहाॅ है। मेरी तो नीद ही न खुली। जल्द किसी को दौड़ाइए।

यकायक उन्हीं औरतो के बीच मे श्यामा को खडे हँसते देखकर हैरत मे आ गये।

पाँचो सहेलियो ने हँसना और तालियाँ पीटना शुरू कर दिया। एक ने कहा--वाह जीजा जी, देख ली आपकी बहादुरी।

श्यामदुलारी--तुम सब की सब शैतान हो।

तीसरी--बीबी तो चोरों के साथ चली गयी और आपने साॅस तक न ली।

गजेन्द्र समझ गये, बड़ा धोखा खाया। मगर जबान के शेर थे, फौरन बिगडी बात बना ली, बोले--तो क्या करता, तुम्हारा स्वॉग बिगाड देता! मैं भी इस तमाशे का मजा ले रहा था। अगर सबों को पकडकर मूँछे उखाड़ लेता तो तुम कितनी शर्मिन्दा होतीं। मै इतना बेरहम नही हूॅ।

सब की सब गजेन्द्र का मुँह देखती रह गयी।

—'वारदात' से