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गुप्त धन
 

पहुँचा दोगे? आज देर हो गई है, तुम्हारे घोडे मे सिर्फ ढॉचा ही रह गया है। मैंने जवाब दिया यह मेरा घोड़ा नहीं है, हुजूर तो डबल मजदूरी देते है, हुकुम दें तो दो इक्के एक साथ बॉध लूं और फिर चलूं।

और सुनिए, एक सेठजी ने इक्का भाडा किया। सब्जी मडी मे सब्जी वगैरह ली और भगाते हुए स्टेशन आये। इनाम की लालच मे मै घोडी पीटता लाया। खुदा जानता है उस रोज जानवर पर बडी मार पड़ी। मेरे हाथ दर्द करने लगे। रेल का वक्त सचमुच बहुत ही तग था। स्टेशन पर पहुंचे तो मेरे लिए वही चवन्नी। मैं बोला, यह क्या ? सेठ जी कहते हैं, तुम्हारा भाडा तख्ती दिखाओ। मैंने कहा देर करे आप और मेरा घोडा मुफ्त पीटा जाय। सेठजी जवाब देते है कि भई, तुम भी तो जल्दी फरागत पा गये और चोट तुम्हारे तो लगी नहीं। मैने कहा कि महाराज, इस जानवर पर तो दया कीजिए। तब सेठजी ढीले पडे और कहा,हाँ इस गरीब का जरूर लिहाज होना चाहिए और अपनी टोकरी से चार पत्ते गोभी के निकाले और घोडी को खिलाकर चल दिये। यह भी शायद मजाक होगा।

मगर मैं गरीब मुफ्त मरा। उस वक्त से घोड़ी का हाजमा बदल गया।

अजब वक्त आ गया है, पब्लिक अब दूसरो का तो लिहाज' ही नही करती। रग-ढग, तौर-तरीका, सभी कुछ बदल गये है। जव हम अपनी मजदूरी मांगते है तो जवाब मिलता है कि तुम्हारी अमलदारी है, खुली सडक पर लूट लो! अपने जानवरों को सेठजी हलुआ-जलेबी खिलायेगे, मगर हमारी गर्दन मारेगे ! कोई दिन थे, कि हमको किराये के अलावा मालपुए भी मिलते थे।

अब भी, इस गिरे जमाने में भी, कभी-कभी शरीफ रईस नजर आ ही जाते हैं! एक बार का जिक्र सुनिए, मेरे ताँगे में सवारियों बैठी। कश्मीरी होटल से निकलकर कुछ थोड़ी-सी चढी थी। कीटगंज पहुँचकर सामनेवाले ने चौरस्ता आने से पहले ही चौदह आने दिये और उतर गये। फिर पिछली एक सवारी ने उतरकर चौदह आने दिये। अब तीसरी उतरती नहीं। मैने कहा कि हजरत चौराहा आ गया। जवाब नदारद ! मैंने कहा कि बावू इन्हे भी उतार लो। बाबू ने देखा-भाला, मगर वह नशे में चूर हैं, उतरे कौन! बाबू बोले, अब क्या