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गुप्त धन
 

ये मेरे चिकित्सा-कौशल के साक्षी होगे। जनता को क्या पड़ी है कि वह इस बात का पता लगाती फिरे कि उन स्थानो मे इन नामो के मनुष्य' रहते भी है, या नहीं। फिर देखो वैद्यक कैसी चलती है।

स्त्री-लेकिन बिना जाने-बूझे दवा दोगे, तो फायदा क्या करेगी?

मोटे०—फायदा न करेगी, मेरी बला से। वैद्य का काम दवा देना है, वह मृत्यु को परास्त करने का ठेका नहीं लेता, और फिर जितने आदमी बीमार पडते हैं, सभी तो नही मर जाते। मेरा तो यह कहना है कि जिन्हे कोई औषधि नहीं दी जाती, वे विकार शान्त हो जाने पर आप ही अच्छे हो जाते है। वैद्यो को बिना माँगे यश मिलता है। पॉच रोगियों मे एक भी अच्छा हो गया, तो उसका यश मुझे अवश्य ही मिलेगा। शेष चार जो मर गये, वे मेरी निन्दा करने थोडे ही आवेगे। मैने बहुत विचार करके देख लिया, इससे अच्छा कोई काम नहीं है। लेख लिखना मुझे आता ही है, कवित्त बना ही लेता हूँ, पत्रों में आयुर्वेद-महत्व पर दो-चार लेख लिख दूंगा, उनमे जहाँ-तहाँ दो-चार कवित्त भी जोड़ दूंगा और लिखूगा भी जरा चटपटी भाषा मे। फिर देखो कितने उल्लू फंसते है। यह न समझो कि मैं इतने दिनों केवल बूढ़े तोते ही रटाता रहा हूँ। मै नगर के सफल वैद्यो की चालो का अद-लोकन करता रहा हूँ और इतने दिनो के बाद मुझे उनकी सफलता के मूल-मत्र का ज्ञान हुआ है। ईश्वर ने चाहा तो एक दिन तुम सिर से पॉव' तक सोने से लदी होगी।

स्त्री ने अपने मनोल्लास को दबाते हुए कहा—मैं इस उम्र में भला क्या गहने पहनूंगी, न अब वह अभिलाषा ही है, पर यह तो बताओ कि तुम्हे दवाएँ बनानी भी तो नहीं आती, कैसे बनाओगे, रस कैसे बनेंगे, दवाओं को पहचानते भी तो नही हो?

भोटे०—प्रिये! तुम वास्तव मे बडी मूर्खा हो। अरे वैद्यो के लिए इन बातो मे से एक की भी आवश्यकता नहीं। वैद्य को घुटकी की राख ही रस है, भस्म है, रसायन है, बस आवश्यकता है कुछ ठाट-बाट की। एक बडा-सा कमरा चाहिए, उसमे एक दरी हो, ताखों पर दस-पाँच शीशियाँ-बोतले हो। इसके सिवा और कोई चीज दरकार नही, और सब कुछ बुद्धि आप ही आप कर लेती है। मेरे साहित्य-मिश्रित लेखों का बड़ा प्रभाव पड़ेगा, तुम देख लेना। अलकारो का मुझे कितना ज्ञान है, यह तो तुम जानती ही हो। आज इस भूमण्डल पर मुझे ऐसा कोई नहीं दीखता जो अलकारों के विषय मे मुझसे पेश पा सके। आखिर इतने दिनो घास तो नहीं खोदी है! दस-पाँच आदमी तो कवि-चर्चा के नाते ही मेरे यहाँ आया-जाया