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गुप्त धन
 

झिझके अपना खून दे देगे। पहले मै बहुत शराब पीता था। मेरी बिरादरी को तो 'तुम जानते होगे। हममे बहुत ज्यादा लोग ऐसे है, जिनको खाना मयस्सर हो या न हो मगर शराब जरूर चाहिए। मै भी एक बोतल शराब रोज पी जाता था। बाप ने काफी पैसे छोड़े थे। अगर किफ़ायत से रहना जानता तो जिन्दगी भर आराम से पड़ा रहता। मगर शराब ने सत्यानाश कर दिया। उन दिनो मै बडे ठाठ से रहता था। कालर-टाई लगाये, छैला बना हुआ, नौजवान छोकरियो से आँखे लड़ाया करता था। धुडदौड मे जुआ खेलना, शराब पीना, क्लब मे ताश खेलना और औरतो से दिल बहलाना, यही मेरी जिन्दगी थी। तीन-चार साल में मैने पच्चीस-तीस हजार रुपये उड़ा दिये। कौडी कफन को न रखी। जब पैसे खतम हो गये तो रोजी की फिक्र हुई। फौज मे भर्ती हो गया। मगर खुदा का शुक्र है कि वहाँ से कुछ सीखकर लौटा। यह सच्चाई मुझ पर खुल गयी कि बहादुर का काम जान लेना नहीं, बल्कि जान की हिफाजत करना है।

'योरोप से आकर एक दिन मै शिकार खेलने लगा और इधर आ गया। देखा, कई किसान अपने खेतों के किनारे उदास खडे है। मैंने पूछा क्या बात है? तुम लोग क्यों इस तरह उदास खडे हो? एक आदमी ने कहा—क्या करे साहब, जिन्दगी से तग है। न मौत आती है न पैदावार होती है। सारे जानवर आकर खेत चर जाते है। किसके घर से लगान चुकाये, क्या महाजन को दें, क्या अमलों को दे और क्या खुद खायँ ? कल इन्ही खेतों को देखकर दिल की कली खिल जाती थी, आज इन्हें देखकर आँखों में आंसू आ जाते है। जानवरो ने सफाया कर दिया।

'मालूम नही उस वक्त मेरे दिल पर किस देवता या पैगम्बर का साया था कि मुझे उन पर रहम आ गया। मैंने कहा—आज से मै तुम्हारे खेतो की रखवाली करूँगा। क्या मजाल कि कोई जानवर फटक' सके। एक दाना जो जाय तो जुर्माना दूं। बस उस दिन से आज तक मेरा यही काम है। आज दस साल हो गये, मैने कभी नागा नही किया। अपना गुजर भी होता है और एहसान मुफ्त मिलता है और सबसे बड़ी बात यह है कि इस काम से दिल को खुशी होती है।'

नदी आ गयी। मैंने देखा वही घाट है जहाँ शाम को किश्ती पर बैठा था। उस चाँदनी में नदी जड़ाऊ गहनों से लदी हुई जैसे कोई सुनहरा सपना देख रही हो।

मैंने पूछा—आपका नाम क्या है? कभी-कभी आपके दर्शन के लिए आया करूंगा।