गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा न हिन्दमें है और न ईरान में। ऐसी किताब लिखना आजादहीका काम था। पंजाबके स्कूलोंमें जामाउलकवायदके बननेसे पहिले मसदरफियूज़ नामकी एक किताबसे कवायद फारसीका काम निकाला जाता था, जो अपने वक्तपर अच्छी किताब थी। मगर अब वह अच्छा काम नहीं दे सकती , वक्त बहुत आगे निकल गया है। ___सन् १८७५ई०के आखिरमें राकिम स्कूलमें दाखिल हुआ था, उस वक्त पंजाबके इब्तदाई मदरसे नीम मकतबों की शक्लमें थे। उर्दू- का कायदा मौजूद न था। कागजोंपर अलीफ-बे लिखकर पढ़ाई जाती थी। तसहील-उल-तालीम नामकी एक किताब उर्दू की पहिली किताब- और उर्दू के क़ायदेका काम देती थी। उर्दू की पहिली और दूसरी और तीसरी किताबें बनी ज़रूर थीं। मगर वह सब स्कूलों तक नहीं पहुँच सकी थीं। कुछ दिन बाद उर्दूकी पहिली और दूसरी किताब आईं। और तसहील-उल-तालीमसे लड़कोंका पीछा छूटा। उर्दूकी पहिली किताब के दो हिस्से थे। पहिले हिस्सेमें उर्दूका कायदा था और दूसरे में कुछ लतायफ। यह लतायफ१७ ऐसे मुश्किल थे कि बाज़ तो उनमेंसे आला जमाअतोंके लड़कोंकी समझमें भी मुश्किलसे आते थे। मसलन एक मंतकी१८ और एक पैराकका लतीफ़ा था, जो दोनों एक साथ नावमें सवार हुए थे। इस तरह एक मंतकी और एक मुल्ला तेलीका लतीफा था। मंतकी कौन होता है और इल्म मंतक क्या शै है, उर्दूका कायदा पढ़नेवाले लड़के भला क्या खाक समझगे। इसी तरह उर्दूकी दूसरी भी ऐसे हिकायत और लतायफसे पुर थीं, जो और भी मुश्किल थे। मगर सबसे मुश्किल थी उर्दूकी तीसरी किताब । उसे मिडिल क्लासके लड़के भी अच्छी तरह नहीं समझ सकते थे, खसूसन उसका हिस्सा नज्म बहुत ही सख्त था। एक दो और उसमें से याद हैं-मुलाहना हों :- १७-चुटकले, मजेदार बातें। १८ - बहस करनेवाला ।
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/११३
दिखावट