गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि सेवा न कर सके, तथापि इस अल्पकालहीमें हिन्दी-संसारमें युगान्तर उपस्थित कर दिया। उनके सामनेही कितनेही हिन्दीके अच्छे लेखक हो गये थे। कितनेही समाचारपत्र निकलने लगे थे। जिस हिन्दीकी ओर पहले लोग आंख उठाकर न देवते थे वह सबकी आँखोंका तारा हो चली थी। हरिश्चन्द्रने हिन्दीके लिये क्या किया, यह बात आगे कही जावेगी । यहाँ केवल इतनाही कहना है कि आज उन्हींकी चलाई हिन्दी मब जगह फेल रही है। उन्हींकी हिन्दी में आजकलके मामयिकपत्र निकलते हैं और पुस्तकं बनती हैं। दिनपर दिन लोग शुद्ध हिन्दी लिग्वना और शुद्ध देवनागरी लिपिमें पत्रव्यवहार करना सीखते जाते हैं। यद्यपि वंगला, मराठी आदि भारतवपकी अन्य कई भाषाओंसे हिन्दी अभी पीछे है. तथापि समस्त भारतवर्षमें यह विचार फैलता जाता है कि इस देशकी प्रधान भाषा हिन्दोहो है और वहो यहाँको राष्ट्रभाषा होनेके योग्य है । साथ साथ यह भी मानते जाते हैं कि मारे भारतवर्षमें देवनागरी अक्षरों- का प्रचार होना उचित है। हश्चिन्द्रके प्रमादसे यह सब हुआ और आज हिन्दीको चर्चा करनेका अवमर मिला। इम समय हिन्दीके दो रूप हैं। एक उर्दू दूसरा हिन्दी। दोनोंमें केवल शब्दोंहीका नहीं लिपि-भेद बड़ा भारी पड़ा हुआ है। यदि यह भेद न होता तो दोनों रूप मिलकर एक हो जाता। यदि आदिसे फारसी लिपिके स्थानमें देवनागरी लिपि रहती तो यह भेदही न होता। अब भी लिपि एक होनेसे भेद मिट सकता है। पर जल्द ऐसा होनेकी आशा कम है। अभी दोनों रूप कुछ कालतक अलग अलग अपनी अपनी चमक दमक दिखानेकी चेष्टा करेंगे। आगे समय जो करावेगा, वही होगा। बड़ी कठिनाई तो यह है कि दोनों एक दूसरेको न पहचानते हैं न पहचाननेकी चेष्टा करते हैं । इससे बड़ा भारी अन्तर होता जाता है ! जो लोग उर्दू के अच्छे कवि और ज्ञाता हैं, वह हिन्दीकी ओर ध्यान देना [ ११० ]
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