हिन्दी-भाषा पर उसमें उसे खुदा या अल्लाह नहीं कहा, करतारू कहा है। उसकी पोथीका आरम्भ यों है - सुमिर आदि एक करतारू । जे जिव दोन्ह कीन्ह संसार । यह स्तुति दूर तक चली गई है, कहीं एक शब्द मुमलमानी नहीं है। मुहम्मदकी प्रशंसामें वह लाचार था, मुहम्मदका नाम लाना पड़ा । खुदा तो करतारू हो सकता है, मुहम्मदका तो कुछ अनुवाद हो नहीं सकता। इसीसे कहता है... कीन्हेसि पुरग्व एक निग्म।। नाम मुहम्मद पूनो करा॥ प्रथम ज्योति बिधि ताकी माजी। औ तेहि प्रीति सृष्ट उपराजी। इसका अर्थ है कि करताम्ने एक निर्मल पुरुप उत्पन्न किया, उसका नाम मुहम्मद है, वह पूर्णिमाका चन्द्र है। विधिने पहले उसकी ज्योति बनाई और उनीकी प्रीतिसे यह संसार उत्पन्न किया। मुसलमान लोग कहते हैं कि सृष्टिको उत्पत्तिमें खुदाने एक नूर उत्पन्न किया। वह मुहम्मदका नूर था। उभीको प्रीतिसे खुदाने दुनिया बनाई। यद्यपि मुहम्मद बहुत पीछे उत्पन्न हुए और मुमलमान उनको अन्तिम पैगम्बर या ईश्वरका दृत मानते हैं, तथापि यह भी मानते हैं कि मुहम्मदका नूर सबसे पहले उत्पन्न हुआ। उस नूर शब्दको भी मलिक मुहम्मदने ज्योति लिखा है, नूर नहीं। इसी प्रकार उसकी पूरी पोथी फारसी-अरबी शब्दों- से एकदम खाली है, सिवा मुहताज, आदिल, अदल, सुलतान और शाह आदि कई एक शब्दोंके जो शरशाहकी तारीफमें उसे लाने पड़े हैं या सिदक, सद्दीक, दोन, आदि और कई एक शब्द जो मुहम्मदके चार यारों और ग्रन्थकारके पोरकी प्रशंसामें आये हैं। तीसरे जिस प्रकार फारसी अरबी शब्द उक्त पोथीमें नहीं हैं, उसी प्रकार संस्कृत शब्द भी उसमें एकदम नहीं आये हैं। आये हैं केवल वही शब्द जो टूटफूटकर हिन्दीमें मिल चुके हैं। मलिक मुहम्मदकी पोथीको
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