पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि खालिस पूर्वी हिन्दीकी पोथी कहना चाहिये । अवध प्रान्तके सर्वसाधारण लोगोंके घरों में जो भाषा प्रचलित थी, वही उक्त पोथीमें लिखी गई है। ऊपर जो चौपाइयाँ उद्धृतकी गई हैं, उनसे यह बात भलीभांति जानी जा सकती है। चौथी बात यह है कि अवध-प्रान्तके हिन्दुओंमें उस समय जो कुछ रीति-चाल थी और जिन शास्त्रों या पुराणोंकी चर्चा थी, उसे भी मलिक मुहम्मद जानता था। शायद दुसरे मुसलमान भी मलिक मुहम्मदकी भांति इन सब बातोंको जानते थे । पर आज कलके मुसलमान हिन्दुओंकी रीति-भांतिको बहुत कम जानते हैं। पदमावत- में मलिक मुहम्मदने हिन्दुआना चाल ढाल और भावोंको बहुत उत्तम रीतिसे दिखाया है। नागमतीका बारहमासा उसने बड़ाही सुन्दर लिखा है, उसके कई एक स्थान ध्यानसे पढ़ने के योग्य हैं । वह विवाह होते समयकी चीजोंका वर्णन करता है। माड़ो सोन कि गगन संवाग । बन्दनवार लाग सब बारा । सजा पाट छत्तरके छाहाँ । रतन चौक पूरे तेहि माहाँ। कंचन कलस नीर भरि धरा। इन्द्र पास आनी अच्छरा । गाँठ दुल्ह-दुलहनिकी जोरी। दुहूं जगत जो जाय न छोरी। वेद पढ़ पंडित तेही ठाऊ। कन्या तुला रासले नाऊ । एक जगह पट मृतुका वर्णन किया है। उसमें वर्षाका वर्णन. करता है- मत पावस बरसै पिव पावा। सावन-भादों अधिक सुहावा । पदमावत चाहत रुत पाई । गगन सुहावन भूमि सुहाई। कोकिल बैन पाँत बग छटी । धन निसरी जनु वीर बहूटी । चमक बीज बरसै जल सोना । दादुर मोर शब्द सुठलोना । रंग राति पिय संग नित जागी। गरजे गगन चौक कंठ लागी । सीतल बूंद ऊंच चौबारा। हरियर सब दोखै संसारा ।