पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी भाषा "हिन्दी-भाषा” नामसे पुस्तकाकार प० अमृतलालजो चक्रवर्तीको भूमिकाके साथ स्थानीय हिन्दी साहित्य परिषद्ने वितरणार्थ छपवाया था। तदनंतर हिन्दी प्रेमियोंकी मांगपर भारतमित्र-कार्यालय द्वारा इसके दो संस्करण प्रकाशित हुए। अपनी इस पुस्तकको गुप्तजी कैसी-क्या बनाना चाहते थे, यह उर्दू-मासिक पत्र 'जमाना' के सम्पादक मुन्शी दयानारायण निगम' साहबके नाम भेजे हुए उनके १-१-१९०५:ई. के पत्रसे प्रकट है। इस पत्रमें गुप्तजीने लिखा था :-“मेरी किताबमें वेदके जमाने- से लेकर मुसलमान जमाने तक हिन्दुस्थानकी जबानकी हालन और उसका इनकलाब दिखाकर ब्रजभाषा, उर्दू और हिन्दीकी पतंवर हिस्टरी होगी। वक्तन फवक्त न जो', तगीर तवद्दुल हुई हैं, सब दिखाई जावेगी। उर्दूकी बात मुख्नसिर कही जावेगी क्योकि 'आजाद' लिख चुके हैं, संस्कृत, हिन्दी और मौजूदा हिन्दीकी ज्यादातर।" -सम्पादक। [ १४१ ]