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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१९६

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बनाम लार्ड कर्जन लगा। उसने सोचा हैं ! मैं कहां उड़ा जाता हूं ? माता पिता कहां ? मेरा घर कहां ? इस विचारके आतेही सुखस्वप्न भंग हुआ। बालक कुलबुलाकर उठ बैठा। देखा और कुछ नहीं, अपनाही घर और अपनी ही चारपाई है। मनोराज्य समाप्त हो गया ! ___ आपने माई लार्ड ! जबसे भारतवर्षमें पधारे हैं, बुलबुलोंका स्पप्न ही देखा है या सचमुच कोई करनेके योग्य काम भी किया है ? खाली अपना खयालही पूरा किया है या यहांकी प्रजाके लिये भी कुछ कर्तव्य पालन किया ? एक बार यह बान बड़ी धीरतासे मनमें विचारिये । आपकी भारतमें स्थितिकी अवधिके पांच वर्ष पूरे हो गये। अब यदि आप कुछ दिन रहेंगे तो सूदमें, मूलधन समाप्त हो चुका । हिसाब कीजिये नुमायशी कामोंके सिवा कामकी बात आप कौनसी कर चले हैं और भड़कबाजीके सिवा ड्यूटी और कर्तव्यकी ओर आपका इस देशमें आकर कब ध्यान रहा है ? इस बारके बजटकी वक्तृताही आपके कर्तव्य- कालकी अन्तिम वक्तता थी । जरा उसे पढ़ तो जाइये फिर उसमें आपकी पांच सालकी किस अच्छी करतूतका वर्णन है ? आप बारम्बार अपने दो अति तुमतराकसे भरे कामोंका वर्णन करते हैं। एक विकोरिया मिमोरियलहाल और दूसरा दिल्ली-दरबार । पर जरा विचारिये तो यह दोनो काम “शो" हुए या “ड्य टो" ? विकोरिया मिमोरियलहाल चन्द पेट भरे अमीरोंके एक दो बार देख आनेकी चीज होगा। उससे दरिद्रों- का कुछ दुःख घट जावेगा या भारतीय प्रजाको कुछ दशा उन्नत हो जावेगी, ऐसा तो आप भी न समझते होंगे। ____ अब दरबारकी बात सुनिये कि क्या था ? आपके खयालसे वह बहुत बड़ी चीज था। पर भारतवासियोंकी दृष्टिमें वह बुलबुलोंके स्वमसे बढ़कर कुछ न था। जहां जहांसे वह जुलूसके हाथी आये, वहीं वहीं सब लौट गये। जिस हाथीपर आप सुनहरी झूल और [ १७९ ]