पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२३२

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विदाई सम्भाषण पसन्द नहीं है ! नादिरसे भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या आप समझते हैं कि आपकी जिहसे प्रजाके जीमें दुःख नहीं होता ? आप विचारिये तो एक आदमीको आपके कहनेपर पद न देनेसे आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देशको प्रजाको भी यदि कहीं जानेकी जगह होती तो क्या वह नाराज होकर इस देशको छोड़ न जाती ? ___ यहांकी प्रजाने आपकी जिद्दका फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्दने इस देशकी प्रजाको पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहां तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए । यहांकी प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुःख और कठोंकी अपेक्षा परिणामका अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि ससारमें सब चीजोंका अन्त है। दुःखका समय भी एक दिन निकल जावेगा। इसीसे सब दुःग्वोंको झलकर पराधीनता महकर भी वह जीती है। माई लाड ! इस कृतज्ञताकी भूमिकी महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँको दीन प्रजाकी, श्रद्धा भक्ति अपने साथ ले जा सके इसका बड़ा दुःख है ! इम देशके शिक्षितोंको तो देखनेकी आपकी आंखोंको ताव नहीं। अनपढ़ गूंगी प्रजाका नाम कभी कभी आपके मुंहसे निकल जाया करता है। उसी अनपढ़ प्रजामें नर सुलतान नामके एक राजकुमारका गीत गाया जाता है। एक बार अपनी विपदके कई साल सुलतानने नरवर- गढ़ नामके एक स्थानमें काटे थे। वहां चौकीदारीसे लेकर उसे एक ऊंचे पद तक काम करना पड़ा था। जिस दिन घोड़ पर सवार होकर वह उस नगरसे विदा हुआ, नगरद्वारसे बाहर आकर उस नगरको जिस रीतिसे उसने अभिवादन किया था, वह सुनिये ! उसने आँखोंमें आंसू भरकर कहा- “यारे नरवरगढ़ ! मेरा प्रणाम ले, आज मैं तुझसे जुदा होता हूं। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपदके दिन मैंने तुझमें काटे हैं, तेरे ऋणका बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! [ २१..