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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२४७

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गुप्त-निबन्धावली चिट्ट और खत एक विद्वान् पुरुष दार्शनिक सजनकी यह उक्ति कि यह काम यद्यपि खराब हुआ, तथापि अब यही अटल रहेगा। इसकी खराबी अब दूर न होगी ! किमाश्चर्य्यमतः परम् ! लड़कपनमें एक देहातीकी कहानी पढ़ी थी जिसका गधा खोया गया था और वह एक दूसरेकी गधीको अपना गधा बताकर पकड़ ले जाना चाहता था। पर जब उसे लोगोंने कहा कि यार । तू तो अपना गधा बताता है, देख यह गधी है ; तो उसने घबराकर कहा था कि मेरा गधा कुछ ऐसा गधा भी न था ! गंवारका गधा गधी हो सकता है, पर भारतसचिव दार्शनिकप्रवर माली साहब जिस कामको बुरा बताते हैं, वही 'निश्चित विषय' भी हो सकता है, यह बात भारतवासियोंने कभी स्वप्नमें भी नहीं विचारी थी। जिस कामको आप खराब बताते हैं, उसे वसेका वैसा बना रखना चाहते हैं, यह नये तरीकका न्याय है। अब तक लोग यही समझते थे कि विचारवान विवेकी पुरुप जहां जायंगे वहीं विचार और विवेककी मर्यादाकी रक्षा करेंगे। वह यदि राजनीतिमें हाथ डालेंगे तो उसकी जटिलताको भी दूर कर देंगे। पर बात उल्टी देखने में आती है। राजनीति बड़े-बड़े सत्यवादी साहसी विद्वानोंको भी गधा गधी एक बतलानेवालोंक बराबर कर देती है ! ____विज्ञवर ! आप समझते हैं और आप जैसे विद्वानोंको समझना चाहिये कि सत्य सत्य है और मिथ्या मिथ्या । मिथ्या और सत्य गड़प शड़प होकर एक हो सकते हैं, यह आप जैसे साधु पुरुषोंक कहनेकी बात नहीं है। विज्ञ पुरुषोंके कहनेकी बात नहीं है। विज्ञ पुरुषोंकी बातोंको आपसमें टकराना न चाहिये। पर गत बजटकी स्पीच में आपने बातोंके मेढ़ लड़ा डाले हैं। आपने कहा है-“जहां तक मेरी कल्पना जा सकती है, भारत शामन यथेच्छ ढंगका रहेगा।" पर यह भी कहा है- "भारतमें किसी प्रकारकी बुरी चाल चलना हमें उससे भी अधिक [ २३० ]