उर्दू-अखबार - पीछे पड़ी। उसी प्रकार उर्दू मामिकपत्रोंके इतिहासमें भी यह बात लक्ष्यके योग्य है कि उनकी उन्नति पद्यसे आरम्भ हुई । पहले कविताके मासिक-पत्र हुए और गजलं छापते रहे। फिर कुछ हमी-दिल्लगी नाविलके बहानेसे गद्य भी उनमें जारी हुआ और गद्य-पाके मिले-जुले पत्र निकलने लगे । अब अन्तमें गद्यका जोर हुआ है। "मखजन" , उनको अच्छे पथ पर चलानेकी चेष्टा की और उनको अपने पावों चलनेका ढङ्ग बताया । अब एक और मामिकपत्र है जो उद्धृ मासिक पत्रोंको समालोचक बनाने की चेष्टा कर रहा है। उसने उर्द्र में आलोचनाकी नींव डाल दी है। उम पत्रका नाम “जमाना" है। वह पहले किम ढंगसे निकलता था और कैमा निकलता था , इस विषयमे कुछ नहीं जानते । हमने उसको वर्तमान वर्षके जनवरी मामसे देख है । वह भी “मग्वजन" की भांति महीनेमें जिल्द बदल डालता है पिछले महीनोंमें उमकी एक जिल्द बदल गई। अब जुलाई और अगम्तका नम्बर एक माथ निकला है जो इस लेखके लिखते ममय हमारे मामने है। जान पडता है कि उसकी उमर एकही माल हुई है और हालके महीनोंमें उसने नाम पाया है । इस समय इसके एडीटर एक नवयुवक कायस्थकुमार बाबू दयानारायण निगम बी० ए० हैं। जबसे वह मम्पादक हुए हैं, तभीसे उस कागजका नाम हुआ है और तभीसे वह एक गिन्तीके योग्य हुआ है। वह आकार प्रकार रङ्ग-ढङ्ग सब बातोंमें मग्वजनकी भांति है। भेद इतना ही है कि मखजनमें राजनीतिक लेग्य नहीं होते और इसमें होते हैं। मखजनमें मुसलमान लेखक अधिक और हिन्द कम हैं और उसमें दोनों बराबर या हिन्दु कुछ अधिक हैं। मग्वजनके लेखकोंमें पञ्जाबी अधिक हैं, इसके लेखकोंमें हिन्दुस्थानी अधिक । और भी एक बातसे इस मासिकपत्रका भाग्य अच्छा मालूम होता है कि मुसलमान भी इसे पसन्द करते हैं और [ २९९ ]
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३१६
दिखावट