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पं० देवकीनन्दन तिवारी ई महीने हुए “प्रयाग-समाचार" के जन्मदाता पण्डित देवकीनन्दन U तिवारीका देहान्त हो गया। "प्रयाग-समाचार"में उनकी मृत्युक विषयमें हमने एक लाइन भी छपी हुई न देखी। दूसरे किसी हिन्दी अखबारमें दस पांच पंक्तियोंमें उनकी मृत्युकी ग्वबर छपी हुई देखी थी, उसका नाम याद नहीं रहा । खबर पढ़कर हमने कई एक हिन्दो-प्रेमियोंको उनके विषयमें पत्र लिखे। किसीसे इतना न हुआ कि उनके विषयकी कुछ मुख्य-मुख्य वातं लिख भेजते। केवल प्रयागके “हिन्दी प्रदीप" के वृद्ध सम्पादक पूज्यवर पण्डित बालकृष्ण भट्टजीने दो चार बातें उनके विपयमें लिख भेजी हैं। उन्हींको प्रकाशित कर देनेके सिवा इस समय अन्य उपाय नहीं है । अब भी हमें आशा है कि कोई सज्जन उनके जीवन और काम सम्बन्धी आवश्यक बात लिखनेकी चेष्टा करेंगे। हिन्दीके एक सुयोग्य लेखकको भाग्यने तो कंगालीमें रखा, पर हिन्दीके प्रेमी भी उसे गुमनामीके हवाले करते हैं, यह बड़े ही आक्षेपकी बात है ! भट्टजीने तिवारीजीके विपयमें जो कुछ लिख भेजा है, वह इस प्रकार है: “पण्डित देवकीनन्दन तिवारी प्रयागसे २० कोस दक्षिण ओर-स्थित एक गाँवके निवासी थे। बहुत थोड़ी उमरमें वह किसी कारणसे बङ्ग देशको चले गये थे। वहां बङ्ग-साहित्यका उन्होंने अच्छा अभ्यास किया । बङ्गालमें उन दिनों ब्राह्म-सामाज और केशवचन्द्र सेनकी बड़ी धूम थी। बंगालसे लौटकर जब वह प्रयागमें आये और उनसे हमारा परिचय हुआ, तो उनकी उमर २५ सालके लगभग थी। उस समय उनकी झुकावट ब्राह्मधर्मकी तरफ थी। जाति-पांति नहीं मानते थे। उस समय उनके ठीक वैसे ही खयाल थे, जैसे कि आजकलके यङ्ग बंगम्लके होते हैं। पीछे [ १५ ]